रविवार, 27 फ़रवरी 2022

पराया धन - बेटी या बेटा

 

Parayadhan story
                चित्र, साभार pixabay से

"अनुज सुन ! वो...पापा...पापा को हार्टअटैक आया है। भाई !  हम बहुत परेशान हैं माँ का रो - रोकर बुरा हाल है , ...हैलो ! हैलो ! अनुज तू सुन तो रहा है न" ?  सिसकते हुए अनु ने पूछा तो उधर से निधि (अनुज की पत्नी) बोली, "दीदी मैं सुन रही हूँ अनुज तो बाथरूम में हैं मैं बताती हूँ उन्हें"।

"निधि तुम दोनों आ जाओ न । ऐसे वक्त में हमें तुम्हारी बहुत जरूरत है। प्लीज निधि ! अनुज को फोन करने को कहना ! ओके"... कहकर  अनु जल्दी से फोन रख दवाइयों का लिफाफा लेकर भागी।

अनु कभी माँ को संभालती तो कभी दवाइयाँ वगैरह के लिए भागदौड़ करती फिर भी बार-बार मोबाइल स्क्रीन चैक करती कि कहीं अनुज की कॉल मिस न हो जाय ।  सुबह से शाम ढ़ल गयी पर अनुज का फोन नहीं आया तो अनु को लगा कि शायद सीधे आ रहे होंगे दोनों । इसलिए कॉल नहीं किया होगा। पापा की हालत जानकर परेशान हो गये होंगे बेचारे ।

माँ ने पूछा तो बता दिया कि निधि को बताया है शायद निकल पड़े होंगे इसीलिए फोन नहीं कर पाये होंगे। और माँ भी बेटे की बाट जोहने लगी।

 ऑपरेशन सफल रहा अब वे खतरे से बाहर हैं सुनकर माँ आँसू पोंछते हुए बोली, "अनु ! ला ! अनुज से बात करवा उसे भी बता दूँ बेचारा परेशान होगा" ।

"हाँ माँ ! और पूछना कब तक पहुँच रहे हैं, बता देना कि घर तो बंद है सीधे हॉस्पिटल ही आ जाना"।

"हाँ बताती हूँ" कहकर माँ ने फोन किया तो उधर से अनुज बोला,  "माँ मैं मीटिंग में हूँ बाद में कॉल करता हूँ" , और फोन काट दिया।

"क्या... मीटिंग... ये...ये देख न अनु !  ये मीटिंग में है । माँ ने मोबाइल से सर पीट लिया।  इसे .. इसे तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता ।  फिर आँसू पोंछते हुए बोली तूने बताया भी था उसे कि यहाँ क्या हुआ है" ?

"हाँ माँ !  मैंने बताया था निधि को"।

"निधि को ! निधि को क्यों ? सीधे अनुज को बताना था न तूने ,  अरे ! हो सकता है उसने बताया ही न हो इसे"।

"ऐसा कैसे हो सकता है माँ ! लाओ मैं निधि से बात करती हूँ" । 

"रहने दें ! छोड़ ! उसी के फोन का इंतजार करते हैं" । कहकर माँ वहीं सीट पर बैठ गयी।

सोचने लगी कि अनु के बचाए सारे पैसे तो आज एक ही दिन में खत्म हो गये होंगे आगे भी बहुत पैसों की जरूरत पड़ेगी आज अनुज का फोन आते ही मैं उसे सबसे पहले खर्चा भेजने को कहूँगी।

आज उसे रह-रहकर वो सारी बीती बातें याद आने लगी कि कैसे अनु बारहवीं के बाद बोलती ही रह गयी कि पापा मुझे डॉक्टर बनना है। प्लीज मुझे आगे की पढा़ई.......    पर हमने एक न सुनी उसकी। मत मारी गयी थी हमारी।

तब हमें लगा कि अनु तो पराया धन ठहरी । इस पर इतने पैसे क्यों बरबाद करना ।  ऊपर से ब्याह का खर्च अलग। पढ़-लिखकर कमायेगी भी तो सासरे में ही देगी, अरे वो देना भी चाहे तो हम ले थोड़े न सकते हैं । बेटी का खाकर पाप थोड़े न चढ़ाना है अपने सर।

किसी तरह बड़ी होशियारी और अनेकों बहाने बना समझा बुझा एमबीबीएस की जगह बी फार्मा करवाया इसे,  और तुरंत ही जॉब पकड़ ली बेचारी ने । और तब से आज तक उसका ही कमाया खाकर खूब पाप चढ़ा रहे हैं अपने सर।

इसके हिस्से का भी बचाया पैसा सारा अनुज को पढ़ाने-लिखाने और इंजीनियर बनाने में लगा दिया और वो लाडसाहब हमसे बिना पूछे अपनी पसंद की लड़की से शादी रचा हमसे दूर अपना घर बसा बैठा।

हम भी न... पहले तो बेटे की पढाई लिखाई नौकरी की खुशी में व्यस्त रहे और फिर उसकी मनमर्जी और मनमानियों से दुखी । 

अनु के बारे में तो सोचा ही नहीं कभी। उसे तो मान मर्यादा और इज्ज़त के दायरे में बाँध दिया और खुद भी हर आने वाले रिश्ते में कमियाँ निकालते निकालते आज तक घर बिठाए अपनी सेवा करवा रहे हैं उससे।

पर अब और नहीं , मेरी तो आँखें खुल गयी हैं । बस ये ठीक हो जायें , फिर इन्हें समझा - बुझाकर  अब अनु के बारे में सोचने को कहूँगी।

कुछ दिनों बाद पापा के ठीक होने पर अनुज ने फोन पर माफी माँगते हुए कहा, "पापा ! देखा न आपने । जब आपको मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी तब मैं चाहकर भी आपके पास न आ सका । छुट्टी ही नहीं मिली , ऐसी ही होती है ये नौकरी । शुक्र है कि अभी तो अनु दी थी आपके साथ ।  

पर  वह भी कब तक साथ रहेगी , कल उसकी शादी के बाद वह अपने घर चली जायेगी फिर क्या होगा पापा ! आप दोनों अकेले होंगे , सोचकर मेरा तो मन बहुत घबराता है ।

इसीलिए तो कहता हूँ पापा! जो मैंने आपसे कहा न उस पर विचार कीजिए ।  घर का क्या है घर तो दूसरा खरीद लेंगे एक बार मेरा अपना काम शुरू हो जाय तो इस बेकार की नौकरी से छुटकारा मिल जायेगा फिर हम सब साथ होंगे ।   हैं न पापा" !

पापा के मुँह से "हूँ"  सुनकर आगे बोला, "तो फिर कब आऊँ पापा" ?

"जब तुम्हें छुट्टी मिले आ जाना" कहकर पापा ने फोन रख दिया।

अगले ही दिन निधि को साथ लेकर अनुज घर पहुंच गया और दोनों ही बड़े संस्कारी बन माँ -पापा की देखभाल एवं सेवा में लग गये ।

मौका देखते ही अनुज बोला "पापा ! घर खरीदने के लिए पार्टी तैयार है कहो तो कल बुला लें मीटिंग के लिए, फिर जैसा आप ठीक समझें"।

पापा बोले,  "ठहर बेटा ! कल नहीं मेरी मीटिंग तो आज ही है बस वकील साहब आते ही होंगे"।

खुश होकर अनुज बोला, "आज ही... अरे वाह ! थैक्यू पापा" !

अपना थैंक्यू सम्भाल के रख बेटा ! आगे काम आयेगा तेरे। कहकर वे वकील साहब को फोन लगाने लगे।

तब तक वकील साहब फाइल हाथ में लिए दरवाजे से अन्दर दाखिल हो गये।

फाइल मेज में रख सोफे पर पसरते हुये बोले, "मास्टरजी साइन करवाने से पहले एक बार फिर पूछता हूँ कि आपने इस बारे में अच्छे से सोच - विचार तो कर लिया है न ।

मेरा मतलब आप अपने पूरे घर को सिर्फ अपनी बिटिया के नाम कर रहे हैं।   बेटे को इस घर में कोई हिस्सा नहीं देना चाहते , इस पर आप लोगों ने अच्छे से विचार तो किया है न" ।

"हाँ ! हाँ !  वकील साहब ! इसमें आपको कोई शक है क्या" ?

"नहीं नहीं मास्टर जी ! शक तो नहीं है पर ऐसा कोई करता नहीं है । क्योंकि सब जानते हैं कि बेटी तो पराया धन है" । सर के बाल खुजलाते सहलाते वकील साहब बोले।

"सही कहा वकील साहब आपने । ऐसा मैं भी सोचता था पर मेरा तो बेटा पराया धन निकला । मेरे जीवन भर की कमाई और सारी जमा-पूँजी मैंने इस पर लगा दी । अब समझ आया तो सोचा थोड़ा सा बचा खुचा अपनी बेटी के लिए सहेज लूँ" ।

सामने खड़ा अनुज ये सब सुनकर हक्का-बक्का रह गया उसकी चालाकी पकड़ी गयी।  ये सोचकर वह पापा से नजर न मिला सका और तुरन्त पत्नी सहित चलता बना ।

                 चित्र साभार, pixabay.com से

31 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -०२ -२०२२ ) को
'का पर करूँ लेखन कि पाठक मोरा आन्हर !..'( चर्चा अंक -४३५५)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!मेरी रचना चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दरऔर आज की नई पीढ़ी को संदेश देने वाली कहानी।

Jyoti khare ने कहा…

सार्थक संदेश देती बहुत अच्छी कहानी

सादर

Amrita Tanmay ने कहा…

मिथक को तोड़ती हुई प्रेरक कहानी। अब तो लीक वाली मानसिकता बदलनी चाहिए।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.आलोक जी!
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.ज्योति खरे जी!
सादर आभार।

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Manisha Goswami ने कहा…

बहुत ही सुंदर संदेश देती लघु कथा!
पढ़ते पढ़ते आंखों में आंसू आ गयें!
ये तो कहानी है जिसका अंत सुखद था पर असल जिंदगी में लड़कियों के सपनों का गला अक्सर घोट दिया जाता है!

Sudha Devrani ने कहा…

जी बिल्कुल सही कहा आपने मानसिकता बदलने की पहल तो करनी ही होगी
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी! मेरी रचना का चयन करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा प्रिय मनीषा जी आपने...ऐसा ही होता है बड़े प्यार से घोटा जाता है लड़कियों के सपनों का गला। पर अब समय बदल रहा है और कुछ लोग समझ रहे हैं तो उम्मीद है कहानी के अंत की तरह कुछ अच्छा हो।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

shashi purwar ने कहा…

प्रेरक कहानी

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बेटा लायक होता तो बेटी कुछ नहीं मिलता..
विचारणीय.…

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मानसिकता बदलती प्रेरक कहानी ।।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

प्रेरणा देती सार्थक कहानी । महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐

मन की वीणा ने कहा…

प्रेरक संदेश देती बहुत ही सार्थक कहानी ,देर से आँख खुली पर खुल गई बहुत सुंदर ढंग से प्रवाह लिए अप्रतिम सृजन।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आ.शशि जी!

Sudha Devrani ने कहा…

जी, आ.विभा जी अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.जोशी जी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.संगीता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद जिज्ञासा जी! आपको भी अनंत शुभकामनाएं।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.कुसुम जी!

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

बेहतरीन प्रेरक प्रस्तुति सुधा जी....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कडुवा सच ... पर अगर समझ में आ सके ये बात ...
कितने ही पुत्र मोहि आज भी नहीं समझते ये बातें और जो है उसकी उपेक्षा करते रहते हैं ...

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार रितु जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा आपने नासवा जी पुत्र मोही उपेक्षा ही करते हैं बेटियों की
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सच को आइना दिखलाती सुंदर सन्देश देती रचना, सुधा दी।

Meena Bhardwaj ने कहा…

कड़वा सच बयान करती प्रेरक कहानी ।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी!

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर और प्रेरक सृजन सखी।

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