पटाखे से जला हाथ
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चित्र साभार pixabay.com से |
इतने सालों बाद भी दीपावली बीतने पर उस छात्र की याद मन को उदास कर देती है ...हर बार मन में ख्याल आता है कि अब वो कैसा होगा....उसके सपने उसे कैसे सालते होंगे... कितना पछताता होगा न वो।
हाँ बात 2003 की है ,विनीत आठवीं कक्षा में नया आया था । उसका परिचय पूछते समय जब मैंने उसे पूछा तुम बड़े होकर पढ़-लिखकर क्या बनोगे...?
तो वह बोला "मैम ! मैं बड़ा होकर आर्मी ज्वाइन करना चाहता हूँ और देश की सेवा करना चाहता हूँ।
बाकी सारे डॉक्टर्स और इंजीनियर्स बनने वाले बच्चों की कक्षा में ये अकेला 'जवान' मुझे ही क्या अन्य सभी टीचर्स को भी बहुत अच्छा लगता था... क्योंकि वह पढ़ने में होशियार और बुद्धिमान तो था ही साथ ही बहुत जिम्मेदार भी था।
लेकिन उसी साल दीपावली की छुट्टियों के बाद जब वह स्कूल आया तो हम सभी उसे देखकर स्तब्ध रह गये।उसकी दायीं आँख और हाथ दीवाली के पटाखों की भेंट चढ़ चुके थे ....
एक बड़ा बम जो जमीन में फेंकने से पहले ही उसके हाथ में फट गया जिससे उसके दायें हाथ की उँगलियाँ जलकर पीछे की तरफ चिपक गयी और एक आँख जलकर ऐसी फूल गयी कि बगैर काले चश्मे के उसे देखकर डर लगने लगा।
मध्यमवर्गीय परिवार से था तो इसके माता-पिता इसकी कोई बड़ी सर्जरी भी नहीं करवा पाये थे।
इतना होशियार और बुद्धिमान बच्चा फिर बायें हाथ से लिखने की प्रेक्टिस में पिछड़ने लगा था।
एक दिन जब मैंने उसके दोस्तों को उसे कहते सुना कि "अरे विनीत ! तू बड़ा होकर विकलांग सर्टिफिकेट बना देना आजकल विकलांगों को नौकरी जल्दी मिल जाती है तो सुनकर मुझे कैसा लगा , कितना दुख हुआ ये बताने के लिए आज भी शब्द नहीं हैं मेरे पास।
मुझे आज भी हर दीपावली पर वह बच्चा याद आता है और साथ ही उसका आर्मी ज्वाइन करने का वह सपना भी।
हर बार दीपावली पर फूटते पटाखों का शोर मुझे अन्दर से भयभीत करता है कि ना जाने किस बच्चे के सपने किस पटाखे के साथ जल रहे हों।
सोचती हूँ त्रेतायुग में जब 14 वर्षों का वनवास पूरा कर श्रीराम अयोध्या वापस लौटे तब अयोध्यावासियों ने खुशी में घी के दिये जलाये थे तभी से दीपावली मनायी जाती है कदाचित तब उन्होने पटाखे तो नहीं फोड़े होंगे।तब कहाँ पटाखे का चलन रहा होगा... है न।
तो फिर ये दीपावली की खुशियों में दीप जलाने के साथ पटाखे छुड़ाने का चलन कब और कहाँ से आया होगा ?
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टिप्पणियाँ
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१२-११-२०२१) को
'झुकती पृथ्वी'(चर्चा अंक-४२४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
तहेदिल से धन्यवाद प्रिय अनीता जी! चर्चा मंच में मेरी रचना साझा करने हेतु।
हटाएंऐसी घटनाएँ अभी भी आम हैं। चक्कर ये है कि हर चीज को इस्तेमाल करने का तरीका होता है लेकिन जब उससे अलग इस्तेमाल करने लगते हैं और असावधानी बरतने लगते हैं तो दुर्घटनाएँ होनी लाजमी हैं। कई लोग खाना बनाते हुए हाथ भी जला देते हैं। वैसे मुझे भी पटाके फोड़े हुए न जाने कितने वर्ष हो गए लेकिन आज भी याद है कि बचपन में जब तक पटाखे फोड़ने का जोश था तब तक काफी मज़ा आता था उन्हें फोड़ने में। हाँ, बस सावधानी काफी बरतते थे। जोश में होश खोने वाले मामले कम किए हैं। जहाँ तक दीवाली की बात है तो शायद तब ये नहीं रहा होगा, लेकिन जैसे जैसे समाज बदलता है, खुशी मनाने का तरीका बदला तभी इनका इस्तेमाल होने लगा होगा।
जवाब देंहटाएंजी, नैनवाल जी!खुशी मनाने के तरीके में भी समय के साथ बदलाव आया होगापर अब ये बदलाव बहुत भारी पड़ रहा है वायु प्रदूषण से साँस लेना भी दूभर हो गया है...काश एक बदलाव पुनः आये और सब त्रेतायुग वाली दीपावली मनायें
हटाएंआपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हृदयतल से धन्यवाद आ.रविन्द्र जी!मेरी रचना पाँच लिंको के आनंद मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंसादर आभार।
प्रिय सुधा जी, बहुत ही मार्मिक प्रसंग लिखा आपने। सच में कभी कभी जीवन में हम इस तरह की घटनाएं देख लेते हैं तो मानो एक असुरक्षा की भावना घेर लेती हैहैकिसी का शौक किसी अनमोल जान पर भारी पड़ बहुत बड़ी कीमत मांग लेता है। एक होनहार बच्चे का एक आकस्मिक घटना के बाद दूसरे लोगों की नजरों में दया और सहानुभूति का पात्र बन जाना बहुत दुखद है। सच में दीवाली पर दीपों की कतारों के मध्य किसने बारूद के वीभत्स खेल की शुरुआत की होगी ये सोचने की बात है। एक संवेदनशील संस्मरण के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनाएं ❤️❤️🌷🌷
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद प्रिय रेणु जी !ब्लॉग पर आने एवं सारगर्भित अनमोल प्रतिक्रिया द्वारा संस्मरण का सार व्यक्त करने हेतु।
हटाएंसही कहा ऐसी घटनाओं से असुरक्षा की भावना पैदा होती है मेरे मन में भी हुई इतनी ज्यादा हुई कि मेरे परिवार में कोई भी पटाखे नहीं छुड़ाता...। सब मेरी ही तरह इसे गलत मानते हैं।
सस्नेह आभार।
प्रिय सुधा जी, आज बहुत दिनों के बाद रीडिंग लिस्ट में आपका ब्लॉग देखकर आज मन आह्लादित हूं। लगता है जो तकनीकी खराबी सही हो गई 😀😀🙏
जवाब देंहटाएंहाँ रेणु जी ! कुछ गड़बडिय़ों की पुष्टि की सूचना मुझे भी मिली है।शुक्र है भगवान का....अब आपका भी आना हुआ।तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार।
हटाएंसत्य कथन, घटना के माध्यम से समाज का सजगता के प्रति सुंदर संदेश l
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मनोज जी!
हटाएंमार्मिक पोस्ट है यह सुधा जी। पढ़कर मन दुखी हो गया। जो भाव आपके हैं, लगभग वही मेरे भी हैं। पर सच यह भी है कि हर ग़लती क़ीमत मांगती है और कई मर्तबा यह क़ीमत बहुत बड़ी होती है, मैं यह निजी अनुभव से जानता हूँ। साझा करके अच्छा किया आपने।
जवाब देंहटाएंजी, जितेन्द्र जी ! सही कहा आपने कि हर गलती कीमत माँगती है...और पटाखे छुड़ाना तो लोग गलत समझ ही नहीं रहे दीवाली बीतने के बाद भी अभी तक लोग पटाखे छुड़ाते ही जा रहे हैं रोज न्यूज सुन रहे है प्रदूषित वायु से साँस लेना दूभर हो गया है फिर भी...।इस गलती की सजा तो गलती करने वाले के साथ बाकी सभी झेल रहे हैं । मुझे तो लगता है ये खुशी नहीं बल्कि अपनी शोहरत का दिखावा है...और ये ऐसे रईस है जिनसे कूड़े वाले और सफाई वालों के लिए नेग
हटाएंभी नहीं निकलता। मेरे विचारों से सहमत होने एवं अनमोल प्रतिक्रिया सेउत्साह वर्धन करने के लिए तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!
हटाएंमार्मिक संस्मरण, दीवाली को दिए जलाकर मनाना सबसे अच्छा है, यदि पटाखे फोड़ने हैं तो अति सावधानी के साथ,
जवाब देंहटाएंजी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
हटाएंआपके इस संस्करण में कई संदेश हैं सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही दर्द भरी दास्तान,वो भी किसी बच्चे की । महसूस करके ही मन कांप उठता है आपने तो खुद देखा है । पटाखों से कई तरह की हानियां होती हैं,पर लोग मानते ही नहीं है । हमारे यहां तो दीवाली के बाद से ही धुंध छाई है प्रदूषण की वजह से ।
जी, जिज्ञासा जी! प्रदूषण बहुत हो गया है इस बार...
हटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
भगवान करे कि ऐसी दुर्घटना किसी के साथ न हो !
जवाब देंहटाएंजी सही कहा आपने....अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
हटाएंबहुत ही मार्मिक प्रसंग है सुधा जी ,उस बच्चे के सपने तो चकनाचूर हो गए और भी ना जाने कितने हादसे होते है इस तरह के । आपकी रचना ने सजग होने का संदेश दिया है ।
जवाब देंहटाएंजी, सहृदय धन्यवाद एवं आभार शुभा जी!
हटाएंएक मार्मिक घटना के माध्यम से सभी को सजगता भरी सीख दी है आपने सुधा जी । सार्थक सृजन ।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी!
हटाएंकई प्रसंक्ग कई हादसे हमेशा के लिए मन को भाभीत कर जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंसोचने पर विवश कर जाते हैं काश काश न होता ... सारी मान्यताएं हिला जाते हैं अन्दर तक ...
जी, नासवा जी तहेदिल से धन्यवाद आपका।
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