शनिवार, 15 मई 2021

अभी भी हाथ छोटे हैं



Coronavirus


 सिसकती है धरा देखो

गगन आँसू बहाता है

ग्रीष्म पिघली बरफ जैसी

मई भी थरथराता है


रुकी सी जिन्दगानी है

अधूरी हर कहानी है

शवों से पट रही धरती

प्रलय जैसी निशानी है


ये क्या से क्या हुआ जीवन

थमी साँसें बिलखती हैं

दवा तो क्या, दुआ भी ना

रूहें तन्हा तड़पती हैं


नजर किसकी जमाने को

आज इतना सताती है

अद्यतन मास्क में छुपता

तरक्की भी लजाती है


सदी बढ़ते जमाने से

सदी भर पीछे लौटे हैं

समझ विज्ञान को आया

अभी भी हाथ छोटे हैं


       चित्र साभार, photopin.com  से




44 टिप्‍पणियां:

रेणु ने कहा…

मार्मिकऔर भावपूर्ण रचना प्रिय सुधा जी। कभी कभी यूं लगता है कि काश विज्ञान ने इतनी प्रगति ना की होती। आज नौबत यहां तक आ गई कुछ कुत्सित मानसिकता वाले लोगों की हिम्मत इतनी बढ़ गईं कि कोरोना जैसी सबसे बड़ी आपदा में समस्त मानवता को धकेल गया। बिलखते लोग और अंतिम संस्कार को तरसती पार्थिव देहों के अम्बार प्रश्न पूछते हैं कैसी है ये तरक्की जिसने इतना दर्द दिया!! सचमुच विज्ञान सभी दर्दों की दवा नहीं। सार्थक चिंतन से भरी रचना के लिए बहुत बधाई सखी अपना खयाल रखिए और सकुशल रहिए ❤️❤️🙏💐🌷🌷

Anuradha chauhan ने कहा…

सदी बढ़ते जमाने से

सदी भर पीछे लौटे हैं

समझ विज्ञान को आया

अभी भी हाथ छोटे हैं
सही कहा आपने 👍 मर्मस्पर्शी सृजन सखी।

Sudha Devrani ने कहा…

जी सखी!सही कहा आपने सचमुच विज्ञान सभी दर्दों की दवा नहीं है....
सनेहासिक्त प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका ।
आप भी अपना खयाल रखिएगा सखी!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार सखी!

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

रुकी सी जिन्दगानी है

अधूरी हर कहानी है

शवों से पट रही धरती

प्रलय जैसी निशानी है
बहुत सुंदर,वाकई अभी विज्ञानं के हाथ बहुत छोटे हैं।मर्म स्पर्शी रचना।

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

सदी बढ़ते जमाने से

सदी भर पीछे लौटे हैं

समझ विज्ञान को आया

अभी भी हाथ छोटे हैं
बहुत सुंदर एवं मर्म स्पर्शी रचना, हाँ कुदरत के आगे अभी विज्ञानं के हाथ बहुत छोटे हैं।

विश्वमोहन ने कहा…

हैवानियत की हवा में विज्ञान कितना हाथ फैलाये!

Abhilasha ने कहा…

वाह समसामयिक चित्रण

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

सुधा जी नमन मुझे भी कभी-कभी यह लगता है कि काश विज्ञान ने तरक्की ना की होती तो यह शायद यह स्थिति ना आती

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

विज्ञान भी एक दिन पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगा । कहीं तो अंत होगा ही ।सुनते हैं महाभारत काल में विज्ञान अपने चरम पर था ।
बहुत मार्मिक रचना । क्या क्या देखना बाकी है अभी क्या मालूम ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत संवेदनाओं को समेट के लिखे भाव ...
सत्य है चाहे कड़वा सच पर इसे ही जीना होगा ... इसके साथ अभी तो चलना होगा ...

शुभा ने कहा…

हृदयस्पर्शी सृजन सुधा जी ।

नूपुरं noopuram ने कहा…

मौन है सभ्यता
स्तब्ध है जीवन,
पर हार मत मान
खोज समाधान ।

_/\_

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार भाई!

Sudha Devrani ने कहा…

सादर आभार एवं धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!

Sudha Devrani ने कहा…

जी रितु जी!तहेदिल से धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

बस यही भय है ना जाने क्या-देखना बाकी है अभी....।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

जी सही कह रहे हैं आप अभी इसी के साथ जीना होगा...
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार शुभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

बस समाधान ही खोज रहे हैं सभी....
तहेदिल से धन्यवाद नुपुरं जी!

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुधा दी, गंगा किनारे के शवों को देख कर तो मन बहुत ही दुखी होता है। क्या वे इंसान नहीं थे? किस तरह कुत्ते उन शवों को...कल्पना करके ही शरीर पर कांटे आ जाते है।
बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, ज्योति जी ऐसा भयावह मंजर देखकर रूह भी काँप रही है...न जाने अभी क्या-क्या देखना बाकी है...
सहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

आपकी भावपूर्ण रचना मन में को द्रवित कर गई, समसामयिक तथा यथार्थ को दर्शाती मर्मस्पर्शी रचना,आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

वाह👌

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सदी बढ़ते जमाने से
सदी भर पीछे लौटे हैं
समझ विज्ञान को आया
अभी भी हाथ छोटे हैं

आज के हालात को ब्यान करती कविता...

Anchal Pandey ने कहा…

यह दौर हमे उचित,अनुचित का बोध करा गया। अभी नही चेते तो कब चेतेंगे?
मार्मिक,सत्य एवं समसामयिक पंक्तियाँ। भावपूर्ण सृजन। सादर प्रणाम 🙏

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद जिज्ञासा जी!सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, शिवम जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा आपने कि यह दौर हमे उचित,अनुचित का बोध करा गया....।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय आँचल जी!

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

आपकी प्रत्येक कविता को पढ़कर यही पता लगता है सुधा जी कि आप उतावली में कुछ नहीं रचतीं, धैर्य के साथ रचनाकर्म करती हैं एवं इसीलिए आपकी प्रत्येक कविता ही नहीं, प्रत्येक शब्द सीधा पढ़ने वाले के हृदय में उतरता है। आपने जो अपनी कविता में कहा है, शब्दशः सत्य है। उससे असहमत होने का तो प्रश्न ही नहीं।

PRAKRITI DARSHAN ने कहा…

नजर किसकी जमाने को

आज इतना सताती है

अद्यतन मास्क में छुपता

तरक्की भी लजाती है---बहुत खूब...बहुत अच्छी रचना है।

ANIL DABRAL ने कहा…

समझ विज्ञान को आया

अभी भी हाथ छोटे हैं

बहुत सुंदर कविता दी, विज्ञान की स्थिति अभी भले ही प्रांशुलभ्ये फले लोभादुद्बाहुरिव वामनः। (रघुवंश म.का. 1/3) जैसी है, परंतु फिर सराहनीय भी है।

ANIL DABRAL ने कहा…

विज्ञान के हाथ जल्द लंबे हो और बीमारी के गिरेबां पर हो, इसी कामना के साथ,🙏

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संदीप जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा आपने अनिल भाई! कि विज्ञान की कोशिश सराहनीय तो है लेकिन सिर्फ कोशिश से कहाँ काम बन रहा है बस यही कामना है कि विजय मिले। इस राक्षस से मुक्त हो ये दुनिया...
सहृदय आभार एवं धन्यवाद आपका।

Onkar Singh 'Vivek' ने कहा…

वाह वाह,बहुत सुंदर पृष्ठ है और भावपूर्ण अभिव्यक्ति,बधाई।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद ओंकार जी!
स्वागत है आपका ब्लॉग पर।

Meena sharma ने कहा…

सदी बढ़ते जमाने से

सदी भर पीछे लौटे हैं

समझ विज्ञान को आया

अभी भी हाथ छोटे हैं
नहीं, सुधाजी शायद अभी भी समझ में नहीं आया वरना ये एलोपैथी और आयुर्वेद की लड़ाई, एक देश का दूसरे देश पर हमला, जैविक हथियारों का निर्माण, गंदी राजनीति....ये सब बंद करके सिर्फ मानवता के लिए एकजुट हो जाते सब।
वैसे सामयिक विषयों पर आप बहुत अच्छा लिख रही हैं। देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ।

Sudha Devrani ने कहा…

ये क्षमा कहकर शर्मिंदा न करें मीना जी!मैं समझती हूँ कि नियमित न रह पाने की कितनी वजहें होती हैं हमारे पास...
आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है मेरा...।
सही कहा आपने कि अभी भी समझ नहीं आया तभी तो मैं बड़ा मैं बड़ा कर रहे हैं तो कोई सियासी खेल खेल रहे हैं...वैक्सीन हैं लेकिन लगवाई नहीं ...मरने के लिए छोड़ा है सबको। ऐसा लगता है जैसे इंसानियत ही मर चुकी है..
रचना पर विमर्श हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद आपका।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

विज्ञान के हाथ तो छोटे ही रहेंगे सुधा जी। मानव के लोभ एवं कुटिलता तो विज्ञान को भी नहीं छोड़ती। मानव जब अपनी मानवता पर निहित स्वार्थ को हावी हो जाने दे तो विज्ञान कहाँ तक संसार की रक्षा कर सकता है? फिर भी प्रयास तो चल ही रहे हैं और चलेंगे भी। आपने सच्चाई बयान की है।

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा आपने जितेन्द्र जी!मानव इतना लोभी एवं स्वार्थी हो गया है कि विज्ञान भी क्या करें ....और प्रकृति भी इसी का दण्ड दे रही है।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

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