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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

करते रहो प्रयास (दोहे)

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1. करते करते ही सदा, होता है अभ्यास ।     नित नूतन संकल्प से, करते रहो प्रयास।। 2. मन से कभी न हारना, करते रहो प्रयास ।   सपने होंगे पूर्ण सब, रखना मन में आस ।। 3. ठोकर से डरना नहीं, गिरकर उठते वीर ।   करते रहो प्रयास नित, रखना मन मे धीर ।। 4. पथबाधा को देखकर, होना नहीं उदास ।    सच्ची निष्ठा से सदा, करते रहो प्रयास ।। 5. प्रभु सुमिरन करके सदा, करते रहो प्रयास ।    सच्चे मन कोशिश करो, मंजिल आती पास ।। हार्दिक अभिनंदन🙏 पढ़िए एक और रचना निम्न लिंक पर उत्तराखंड में मधुमास (दोहे)

लोहड़ी मनाएं

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चलो आओ दोस्तों मिलकर लोहड़ी मनाएं हम सोसायटी वाले हैं चलो सर्वधर्म लोहड़ी मनाकर भाईचारा बढ़ाएं ! पड़ौसी कौन है ये तो हम नहीं जानते, अगल-बगल सोसायटी में किसी को नहीं पहचानते, पर इसमें क्या ?   चलो थोड़ा हाय हैलो ही कर आयें ! हम सोसायटी वाले हैं सर्वधर्म लोहड़ी मनाएं ! हाँ आज पूरा दिन तेज बारिश और हाड़कंपाती ठंड है दिन भर ब्रांडेड महंगे ऊनी कपड़ों से अपना तो जिस्म बंद है सोसायटी मेंबर्स से अच्छी रकम वसूली है डीजे नाईट है.....हम आधुनिक हैं सो वन पीस जरूरी है..... कहाँ पता चलता है कि अपने पैर वन पीस में ठंड से कंपकंपाएं या डीजे की थाप पर थिरकाएं आओ दोस्तों हम तो सर्वधर्म लोहड़ी मनाएं ! डीजे के कानफोड़ू संगीत से अपनी सोसायटी में रौनक बढ़ी है क्या फर्क पड़ता है,अगर छात्रों की पढ़ाई में कुछ अड़चन पड़ी है हमें क्या....किसी का बीमार बुजुर्ग कानफोड़ू संगीत से परेशान है.... ये डीजे नाईट तो अपनी सोसायटी की शान है पुरातनता को गाँँव में छोड़ हम कुछ आधुनिक हो जाएं चलो आओ दोस्तों मिलकर लोहड़ी मनाएं।                     ...

घर से निकलते ही......

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घर से निकलते ही ठण्ड  से ठिठुरते ही दिखता है अपना शहर कुछ भीगे भागे से कुछ हैं अभागे से सहते हैं ठंड का कहर आसमां को तकते हैं  दुआ फिर ये करते हैं कुछ धूप आये नजर घर से निकलते ही ठंड से ठिठुरते ही दिखता है अपना शहर     'एक माँ' पतली सी धोती में शिशु को छुपाती वो बेबस सी आयी नजर बुझता अलाव उसका फूंकनी से फूंके वो रो - रो के करती बसर "ये सर्द निकले तो कुछ कर ही लूँगी मैं सह ले लला ! इस पहर" पतली सी धोती में शिशु को छुपाती वो बेबस सी आयी नजर.... ' नन्हा छोटू ' खेलने की उमर में ही डिलीवरी करता वह सुबह-शाम यूँ घर-घर सबके ही सामने यूँ डपट दिया जाता वो दिखता तो है बेफिकर आँखें सब कहती हैंं झुकी -झुकी रहती हैं कितना बने वो वजर खेलने की उमर में ही डिलीवरी करता वो सुबह-शाम यूँ घर-घर 'एक गरीब' टूटे से सपने है बदहाल अपने हैं पर मन में आशा की लहर कंपकंपाती शीत में वो तार-तार वसन पहने शीत-बाण से है बेफिकर दिनभर कमरकस के दिहाड़ी कमाता वो करता गुजर 'औ' बसर है मन में आशा की लहर।                    चित...

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