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भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

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सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी ।  बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया  

....रवि शशि दोनों भाई-भाई.......

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स्कूल की छुट्टियां और बच्चों का आपस में लड़ना झगड़ना..... फिर शिकायत.... बड़ों की डाँट - डपट...... पल में एक हो जाना....अगले ही पल रूठना... माँ का उन्हें अलग-अलग करना... तो एक-दूसरे के पास जाने के दसों बहाने ढूँढ़ना.... न मिल पाने पर एक दूसरे के लिए तड़पना....       तब माँ ने सोचा- -- यही सजा है सही, इसी पर कुछ इनको मैं बताऊँ, दोनोंं फिर न लड़ें आपस में,ऐसा कुछ समझाऊँ... दोनोंं को पास बुलाकर बोली.... आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ एक अजब कहानी, ना कोई था राजा जिसमें ना थी कोई रानी... बच्चे बोले --तो फिर घोड़े हाथी थे...?                  या हम जैसे साथी थे....!! माँ बोली---हाँ ! साथी थे वे तुम जैसे ही                  रोज झगड़ते थे ऐसे ही...... अच्छा!!!... कौन थे वे ?..      .. .."रवि और शशि". .. रवि शशि दोनों भाई-भाई खूब झगड़ते  थे लरिकाई रोज रोज के शिकवे सुनकर तंग आ गयी उनकी माई...... एक कर्मपथ ता पर विपरीत मत झगड़ेंगे यूँ ही तो होगी जगहँसाई ...

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