चित्र : "साभार गूगल से" जब निकले थे घर से ,अथक परिश्रम करने, नाम रौशन कर जायेंगे,ऐसे थे अपने सपने । ऊँची थी आकांक्षाएं , कमी न थी उद्यम में, बुलंद थे हौसले भी तब ,जोश भी था तब मन में !! नहीं डरते थे बाधाओं से, चाहे तूफ़ान हो राहों में ! सुनामी की लहरों को भी,हम भर सकते थे बाहों में शिक्षित बन डिग्री लेकर ही, हम आगे बढ़ते जायेंगे। सुशिक्षित भारत के सपने को, पूरा करके दिखलायेंगे ।। महंगी जब लगी पढ़ाई, हमने मजदूरी भी की । काम दिन-भर करते थे, रात पढ़ने में गुजरी।। शिक्षा पूरी करके हम , बन गये डिग्रीधारी। फूटी किस्मत के थे हम ,झेलते हैं बेरोजगारी ।। शायद अब चेहरे से ही , हम पढ़े-लिखे दिखते हैं ! तभी तो हमको मालिक , काम देने में झिझकते हैं कहते ; पढ़े-लिखे दिखते हो कोई अच्छा सा काम करो ! ऊँचे पद को सम्भालो, देश का ऊँचा नाम करो" ! कैसे उनको समझाएं? हम सामान्य जाति के ठहरे, देश के सारे पदोंं पर तो अब, हैं आरक्षण के पहरे ! सोचा सरकार बदल जायेगी, अच्छे दिन अपने आयेंगे ! 'आरक्षण और जातिवाद' से, ...