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भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

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सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी ।  बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया  

खोये प्यार की यादें......

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वो ऐसा था/वो ऐसी थी यही दिल हर पल कहता है, गुजरती है उमर, यादों में खोया प्यार रहता है......... भुलाये भूलते कब हैं वो यादें वो मुलाकातें, भरे परिवार में अक्सर अकेलापन ही खलता है । कभी तारों से बातें कर कभी चंदा को देखें वो, कभी गुमसुम अंधेरे में खुद ही खुद को समेटें वो । नया संगी नयी खुशियाँ कहाँ स्वीकार करते हैं, उन्हीं कमियों में उलझे ये तो बस तकरार करते हैं । कहाँ जीते हैं ये दिल से, ये घर नाबाद रहता है, गुजरती है उमर यादोंं में खोया प्यार रहता है.......... साथी हो सगुण फिर भी इन्हेंं कमियां ही दिखती हैं, जो पीछे देख चलते हैं, उन्हेंं ठोकर ही मिलती हैं.। कशमकश में रहे साथी, कमीं क्या रह गयी मुझमें समर्पित है जिन्हेंं जीवन,वही खुश क्यों नहीं मुझमें । करीब आयेंगे ये दिल से, यही इन्तजार रहता है, गुजरती है उमर यादों में खोया प्यार रहता है.......। बड़े जिनकी वजह से दूर हो जीना इन्हेंं पडता, नहीं सम्मान और आदर उन्हें इनसे कभी मिलता.। खुशी इनकी इन्हें देकर बड़प्पन खुद निभाते हैं, वही ताउम्र  छोटों  से  उचित  सम्मान पाते हैं .। दिल ...

शुक्रिया प्रभु का.......

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हम चलें एक कदम फिर कदम दर कदम यूँ कदम से कदम हम फिर बढाते चले । जिन्दगी राह सी,और चलना ही अगर मंजिल नयी उम्मीद मन में जगाते रहें। खुशियाँ मिले या गम हम चले, हर कदम शुकराने तेरे मन में गाते रहें। डर भी है लाजिमी, इन राहों पर, कहीं खाई है, तो कभी तूफान हैं । कभी राही मिले जाने-अनजाने से, कहीं राहें बहुत ही सुनसान हैं । आशा उम्मीद के संग हो थोड़ा सब्र साहस देना तो उसकी पहचान है । मन मेंं हर पल करे जो शुकराना तेरा मंजिलें पास लाना तेरा काम है । ये दुनिया तेरी, जिन्दगानी तेरी, बस यूँ जीना सिखाना तेरा काम है । कभी चिलमिलाती उमस का कहर, कभी शीत जीवन सिकुडाती सी है । कभी रात काली अमावश बनी, कभी चाँद पूनम दे जाती जो है । न हो कोई शिकवा ,न कोई गिला बस तेरे गुण ही यूँ गुनगुनाते रहें, जीवन दर्शन जो दिया तूने, शुकराने तेरे मन में गाते रहें । नयी उम्मीद मन में जगाते रहें ।

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