बेरोजगारी : "एक अभिशाप"
पढे-लिखे ,डिग्रीधारी
सक्षम,समृद्ध, सुशिक्षित
झेल रहे बेरोजगारी।
कर्ज ले,प्राप्त की उच्च शिक्षा,
अब सेठजी के ताने सुनते।
परेशान ये मानसिक तनाव से,
आत्महत्या के रास्ते ढूँढते।
माँ,बहनों के दु:ख जो सह न सके,
वे अभागे गरीबी मिटाने के वास्ते,
परचून की दुकान पर मिर्ची तोलते।
तो कुछ सैल्समैन बन गली-गली डोलते।
तो कुछ सैल्समैन बन गली-गली डोलते।
कुछ प्रशिक्षित नव-युवा,
आन्दोलन कर धरने पर बैठते
नारेबाजी के तुक्के भिडाते,
मंत्री जी की राह ताकते,
नौकरी की गुहार लगाते।
तो कुछ विदेशी कम्पनियों की सदस्यता
में धन-जन जुटाने के जुगाड़ लगाते
हमारे सुशिक्षित नवयुवक,
निठल्ले ,निकम्मे कहलाते।
बेरोजगारी इनके लिये अभिशाप नहीं तो और क्या है।
अपने देश का ये दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है ?....
(सुधा देवरानी)
तो कुछ विदेशी कम्पनियों की सदस्यता
में धन-जन जुटाने के जुगाड़ लगाते
हमारे सुशिक्षित नवयुवक,
निठल्ले ,निकम्मे कहलाते।
बेरोजगारी इनके लिये अभिशाप नहीं तो और क्या है।
अपने देश का ये दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है ?....
(सुधा देवरानी)
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०३ -११ -२०१९ ) को "कुलीन तंत्र की ओर बढ़ता भारत "(चर्चा अंक -३५०८ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
वाह ! बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय सुधा दीदी .
सादर