सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे, तेरे पुण्यों का भार तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ● तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०३ -११ -२०१९ ) को "कुलीन तंत्र की ओर बढ़ता भारत "(चर्चा अंक -३५०८ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी !सहयोग और उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से आभार आपका...
जवाब देंहटाएंआज हर एक घर में एक बेरोजगार बैठा है बेरोजगारी इस कदर उन्हें धुन की तरह खा रही है कि कई बार वो कमजोर पड़ जाते हैं.. और गलत कदम उठा लेते हैं लेकिन वह क्या करें कब तक भागे अपनी जिम्मेदारियों से जीवन जीने के लिए पैसों की जरूरत तो पड़ेगी है और पढ़ लिख कर भी अगर नौकरी ना मिले तो बेरोजगारी का दर्द ,कुंठा एक युवा बेरोजगार ही जान सकता है ,..बहुत ही विषम विषय की और आपने ध्यान आकर्षित किया है.. अपनी संतुलित शब्दों के माध्यम से बेरोजगारी नामक मुद्दे को बहुत ही अच्छे ढंग से आपने कागज पर उतार दिया
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद अनु जी !
जवाब देंहटाएंआपने बेरोजगारी का बहुत सही चित्रण किया है ,शब्द शब्द चीत्कार कर रही हैं ,बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार सुधा जी
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी !
हटाएंसस्नेह आभार।
हार्दिक धन्यवाद, आ.यशोदा जी! मेरी पुरानी रचना को विशेषांक मे स्थान देने हेतु...
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
वाह !एकदम सटीक ,सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद शुभा जी!
हटाएंसमाज का प्रत्यक्ष शब्दांकन आँखों के सामने.
जवाब देंहटाएंवाह ! बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय सुधा दीदी .
सादर
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी!
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