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जनवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बी पॉजिटिव

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  "ओह ! कम ऑन मम्मा ! अब आप फिर से मत कहना अपना वही 'बी पॉजिटिव' ! कुछ भी पॉजिटिव नहीं होता हमारे पॉजिटिव सोचने से ! ऐसे टॉक्सिक लोगों के साथ इतने नैगेटिव एनवायरनमेंट में कैसे पॉजिटिव रहें ?   कैसे पॉजिटिव सोचें जब आस-पास इतनी नेगेटिविटी हो ?.. मम्मा ! कैसे और कब तक पॉजिटिव रह सकते हैं ? और कोशिश कर भी ली न तो भी कुछ भी पॉजिटिव नहीं होने वाला !  बस भ्रम में रहो ! क्या ही फायदा ? अंकुर झुंझलाहट और  बैचेनी के साथ आँगन में इधर से उधर चक्कर काटते हुए बोल रहा था ।  वहीं आँगन में रखी स्प्रे बोतल को उठाकर माँ गमले में लगे स्नेक प्लांट की पत्तियों पर जमी धूल पर पानी का छिड़काव करते हुए बोली, "ये देख कितनी सारी धूल जम जाती है न इन पौधों पर । बेचारे इस धूल से तब तक तो धूमिल ही रहते है जब तक धूल झड़ ना जाय" ।   माँ की बातें सुनकर अंकुर और झुंझला गया और मन ही मन सोचने लगा कि देखो न माँ भी मेरी परेशानी पर गौर ना करके प्लांट की बातें कर रही हैं ।   फिर भी माँ का मन रखने के लिए अनमने से उनके पास जाकर देखने लगा , मधुर स्मित लिए माँ ने बड़े प्यार से कहा "ये देख ...

बेरोजगारी : "एक अभिशाप"

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   नवयुवा अपने देश के,     पढे-लिखे ,डिग्रीधारी     सक्षम,समृद्ध, सुशिक्षित      झेल रहे बेरोजगारी।                                                            कर्ज ले,प्राप्त की उच्च शिक्षा,                                अब सेठजी के ताने सुनते।                                परेशान ये मानसिक तनाव से,                                 आत्महत्या के रास्ते ढूँढते।      माँ,बहनों के दु:ख जो सह न सके,  वे अभागे गरीबी मिटाने के वास्ते, परचून की दुकान पर मिर्ची तोलते। तो कुछ सैल्समैन बन गली-गली डोलते।     ...

नारी - अबला नहीं

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आभूषण रूपी बेड़ियाँ पहनकर... अपमान, प्रताड़ना का दण्ड, सहना नियति मान लिया... अबला बनकर निर्भर रहकर, जीना है यह जान लिया.... सदियों से हो रहा ये शोषण, अब विनाश तक पहुँच गया । "नर-पिशाच" का फैला तोरण, पूरे समाज तक पहुँच गया ।। अब वक्त आ गया वर्चस्व करने का, अन्धविश्वाश ,रूढिवादिता ,कुप्रथाओं, से हो रहे विनाश को हरने का । हाँ ! वक्त आ गया अब पुन:  शक्ति रूप धारण करने का । त्याग दो ये बेड़ियाँ तुम, लौहतन अपना बना दो ! थरथराये अब ये दानव... शक्तियां अपनी जगा दो ! लो हिसाब हर शोषण का उखाड़ फेंको अब ये तोरण ! याद आ जाए सभी को, रानी लक्ष्मीबाई का युद्ध-भीषण । उठो नारी ! आत्मजाग्रति लाकर, आत्मशक्तियाँ तुम बढ़ाओ ! आत्मरक्षक  स्वयं बनकर  निर्भय  निज जीवन बनाओ ! शक्ति अपनी तुम जगाओ !          .                   - सुधा देवरानी

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