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आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

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  आओ बच्चों ! अबकी बारी  होली अलग मनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें  छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग  सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए  एक और रचना इसी ब्लॉग पर ●  बच्चों के मन से

ब्लॉग से मुलाकात..बहुत दिनों बाद

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मेरे ब्लॉग ! देखो मैं आ गयी ! थोड़े समय के लिए ही सही  मन में खुशियाँ छा गयी ! जानते हो तुमसे मिलने को  क्या कुछ नहीं किया मैंने ! और तो और छोटों से किया वादा ही तोड़ दिया मैंंने ! पर ये क्या ! ऐसे क्यों उदास बैठे हो ! जरा उत्साहित भी नहीं, ज्यों गुस्सा होकर ऐंठे हो ! अब तुमसे क्या बताना या छुपाना  तुम भी तो जानते हो न, मोबाइल, कम्प्यूटर ठीक नहीं सेहत के लिए ये तुम भी तो मानते हो न !!! परन्तु तुम तक आने का माध्यम सिर्फ इंटरनेट है... उसी से हो तुम,और तुम्हारा सबकुछ कम्प्यूटर में सैट है । हम भी नहीं मिलेंगे तुमसे जब ये वादा करते हैं तभी अपने छोटों को  कम्प्यूटर वगैरह से दूर रखते हैं। रेडिएशन के नुकसान अगर  उनसे कह देते हैं "आप क्यों" कहकर वे तो हमें ही चुप कर देते हैं। हाँ दुख होता है कि अपना तो जमाना ही नहीं आया छोटे थे तो बड़ों से डरे, अब बड़े हैं तो छोटों ने हमें डराया !!! खैर ! उनकी सलामती के लिए डर कर ही रह लेते हैं हम अपने छोटों के खातिर मेरे ब्लॉग ! तुमसे दूरियाँ सह लेते हैं.....

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