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सैनिक, संत, किसान (दोहा मुक्तक)

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सैनिक रक्षा करते देश की, सैनिक वीर जवान । लड़ते लड़ते देश हित, करते निज बलिदान । ओढ़ तिरंगा ले विदा,  जाते अमर शहीद, नमन शहीदों को करे, सारा हिंदुस्तान ।। संत संत समागम कीजिए, मिटे तमस अज्ञान । राह सुगम होंगी सभी, मिले सत्य का ज्ञान । अमल करे उपदेश जो, होगा जीवन धन्य, मिले परम आनंद तब, खिले मनस उद्यान । किसान खून पसीना एक कर , खेती करे किसान । अन्न प्रदाता है वही, देना उसको मान । सहता मौसम मार वह, झेले कष्ट तमाम, उसके श्रम से पल रहा सारा हिंदुस्तान ।         सैनिक, संत, किसान 1) सीमा पर सैनिक खड़े, खेती करे किसान ।    संत शिरोमणि से सदा,  मिलता सबको ज्ञान।    गर्वित इन पर देश है , परहित जिनका ध्येय,    वंदनीय हैं सर्वदा, सैनिक संत किसान ।। 2) सैनिक संत किसान से,  गर्वित हिंदुस्तान ।     फर्ज निभाते है सदा,  लिये हाथ में जान ।     रक्षण पोषण धर्म की,  सेवा पर तैनात,      करते उन्नति देश की,  सदा बढ़ाते मान ।। हार्दिक अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए एक और रचना निम्न लिंक पर ●  मुक्...

माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी

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छ्वाया फूटे सौण - भादों , धार नदियों संग आई  माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी बोली मुझसे खुद लगीं बा  हो सके तो गाँव आ जा बीसीयों बीते मिले आ अब तो ये सूरत दिखा जा मटण्या पाणी, सौंधी खुशबू समलौण्या दुलार लायी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी वो पहाड़ी धार वाली बोली द्या अब ना गिरेगी बाट चौड़े पक्के वाले  माट में अब ना सनेगी गाड़ी मोटर पों-पों करती अब तो हर इक ख्वाल आयी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी म्याल ना लिपने पड़ेंगे चमचमाती फर्श बोली कूड़ी में लेंटर पड़े अब हुई चकमक रौली-खौली कम हुए हैं गोर-बाछी कार जब से ढ्यार आयी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी ना पुरानी बात है अब  सार्यूं मा कुर्री की झाड़ी पुँगड़ी-पटली बाँझ हैं सब सूनी-सूनी हैं तिबारी पर घुघूती जब बासूति  तब पुरानी याद आयी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी । हाँ पुराने दिन यहाँ  खेतों में फसलें हरहराती कोदो लौ ती बेटी ब्वारी  झंगोरे की बात आती स्यार में सट्टी थे पकते  उरख्यली चूड़ा कुटायी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी दे दनादन फसल पकती  बाद...

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