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सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

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  किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे,  तेरे पुण्यों का भार  तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ●  तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे

'आइना' समाज का

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प्रस्तुत आलेख कोई कहानी या कल्पना नहीं, अपितु सत्य घटना है । आज मॉर्निंग वॉक पर काफी आगे निकल गयी । सड़क  के पास बने स्टॉप की बैंच पर बैठी थोडा सुस्ताने के लिए । तभी सिक्योरिटी गार्ड को किसी पर गुस्सा करते हुए सुना, एक दो लोग भी वहाँ इकट्ठा होने लगे ।   मैं भी आगे बढी, देखा एक आदमी बीच रोड़ पर लेटा है, नशे की हालत में ।  गार्ड उसे उठाने की कोशिश कर रहा है,गुस्से के साथ ।  तभी एक अधेड़ उम्र की महिला ने आकर गार्ड के साथ उस आदमी को उठाया और किनारे ले जाकर गार्ड का शुक्रिया किया ।  नशेड़ी शायद उस महिला का पति था। थोड़ा आँखें खोलते हुए,महिला के हाथ से खुद को छुड़ाते हुए, लड़खड़़ाती आवाज में चिल्ला कर बोला, "मैं घर नहीं आउँगा"।  ओह ! तो  जनाब घर के गुस्से में पीकर आये हैं;  सोच कर मैने नजरें फेर ली, और फिर वापस वहीं जाकर बैठ गयी, थोड़ी देर बैठने के बाद घर के लिए निकली तो देखा रास्ते मे पुल पर खडी वही महिला गुस्से मे बड़बड़ा रही थी,  गला रूँधा हुआ था, चेहरे पर गुस्सा, दु:ख, खीज और चिंता । वह परेशान होकर पुल से नीचे की तरफ देख रही थी, एक हाथ से सिर...

प्रकृति का संदेश

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हरी - भरी धरती नीले अम्बर की छाँव प्रकृति की शोभा बढाते ये गाँव। सूर्य चमक कर देता खुशहाली का सन्देश, हवा महककर बोली; "मैं तो घूमी हर देश"।। चँदा ने सिखाया देना सबको नया उजाला, तारे कहते ; गीत सुनाओ सबको मस्ती वाला। देना सीखो ये ही तो  है प्रकृति का सन्देश ! हवा महक कर बोली;"मैं तो घूमी सब देश"।। जीवन की जरूरत पूरी करते ये वृक्ष हमारे, बिन इनके तो अधूरे हैं जीवन के सपने सारे। धरती की प्यास बुझाना नदियों का लक्ष्य -विशेष, हवा महक कर बोली; "मै तो घूमी सब देश" ।। देखो ! आसमान ने पूरी, धरती को ढक डाला है, धरती ने भी तो सबको ,माँ जैसा सम्भाला है। अपनेपन  से सब रहना, ये है इनका सन्देश, हवा महक कर बोली; "मैं त़ो घूमी सब देश"।। पढिये प्रकृति पर आधारित मेरी एक और कविता  " प्रकृति की रक्षा, जीवन की सुरक्षा "

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