दर्द होंठों में दबाकर....
उम्र भर संघर्ष करके
रोटियाँ अब कुछ कमाई
झोपड़ी मे खाट ताने
नींद नैनों जब समायी
नींद उचटी स्वप्न भय से
क्षीण काया जब बिलखती
दर्द होठों में दबाकर
भींच मुट्ठी रूह तड़पती...
शिथिल देह सूखा गला जब
घूँट जल को है तरसता
हस्त कंपित जब उठा वो
सामने मटका भी हँसता
ब्याधियाँ तन बैठकर फिर
आज बिस्तर हैं पकड़ती
दर्द होंठों में दबाकर
भींच मुट्ठी रुह तड़पती
ये मिला संघर्ष करके
मौत ताने मारती है
असह्य सी इस पीर से
अब जिन्दगी भी हारती है
खत्म होती देख लिप्सा
रोटियाँ भी हैं सुबकती
दर्द होंठों में दबाकर
भींच मुट्ठी रुह तड़पती
चित्र साभार गूगल से....
ऐसे ही एक और रचना वृद्धावस्था पर
"वृद्धावस्था "
टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर नव गीत सुना जी अभिनव व्यंजनाएं।
आपने दृश्य उत्पन्न कर दिया है।
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
घूँट जल को है तरसता
हस्त कंपित जब उठा वो
दूर मटका उसपे हँसता
ब्याधियाँ तन बैठकर फिर
आज बिस्तर हैं पकड़ती
बहुत सुंदर यथार्थ चित्रण करती पंक्तियाँ। वाह क्या खूब।
सस्नेह आभार।
सस्नेह आभार।
सादर
सादर आभार।
व्यथा का सरीक छत्रं करते भाव और शब्द ...
बधाई !