नवसृजित हो रही सृष्टि....
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
क्रोधित कोरोना बन
हमसे ये बोल रहा
हो सावधान मानव
मत अत्याचार करो
इस विभत्सता हेतु
ना मुझे लाचार करो
तेरी बाँधी नफरत
की गठरी खोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
मजबूर हुई मनु
मैं तेरी ही करनी से
तूने लगाव जो छोड़
दिया निज धरनी से
तेरे विध्वंस को आज
मेरा मन तोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
ठहरो तनिक तुम
अपने में ही रह जाओ
नवसृजित हो रही
सृष्टि बाधा मत लाओ
बेदम सृष्टि में कोई
सुधारस घोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
चित्र साभार,पिन्टरेस्ट से
टिप्पणियाँ
सामयिक रचना
सुधारस घोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
यथार्थ का चित्रण। आभार और बधाई!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
बधाई सुधा जी।
स्वतः अपने को भी मार्ग दिखा रह्जी है प्राकृति, बहुत कुछ सिखा रही है ...
बहुत ही लाजवाब शब्दों में प्राकृति के महत्त्व को रक्खा है आपने ... उत्तम रचना ....
मनु को चेतावनी देता हुआ ।
सुंदर सार्थक भाव सुधा जी।
सस्नेह।