खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं
तुम कहते रहोगे वो सुनेंगे नहीं
अब तुम्हारे ही तुमसे मनेंगे नहीं
इक कदम जो उठाया सबक देने को
चाहकर भी कदम अब रुकेंगे नहीं
जा चुका जो समय हाथ से अब तेरे
जिन्दगी भर वो पल अब मिलेंगे नहीं
जोड़ते -जोड़ते वक्त लगता बहुत
टूटे रिश्ते सहज तो जुड़ेंगे नहीं
तेरे 'मैं' के इस फैलाव की छाँव में
तेरे नन्हे भी खुलके बढेंगे नहीं
छोटी राई का पर्वत बना देख ले
खाइयां पाटकर भी पटेंगे नहीं
चढ़ ले चढ़ ले कहा तो चढ़े पेड़ पर
अब उतरने को कोई कहेंगे नहीं
निज का अभिमान इतना बड़ा क्या करें
घर की देहरी पे जो झुक सकेंगे नहीं
जो दलीलें हों झूठी, और इल्ज़ाम भी
सच के साहस के आगे टिकेंगे नहीं
दिल के रिश्तों को जोड़ा फिर तोड़ा, मगर
खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं
ऐसे ही रिश्तों पर आधारित मेरा एक और सृजन
टिप्पणियाँ
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-04-2021) को
"धुआँ धुआँ सा आसमाँ क्यूँ है" (चर्चा अंक- 4047) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
घर की देहरी पे जो झुक सकेंगे नहीं
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, सुधा दी।
लेकिन आज के डिजिटल दौर में खून के रिश्ते भी गाढ़े नहीं रहे बल्कि वर्चुअल हो गए हैं.
चढ़ ले चढ़ ले कहा तो चढ़े पेड़ पर
अब उतरने को कोई कहेंगे नहीं। लाजवाब
सादर आभार।
उत्साहवर्धन हेतु...।
सस्नेह आभार।
तहेदिल से धन्यवाद आपका।
सादर आभार।
टूटे रिश्ते सहज तो जुड़ेंगे नहीं
वाकई अहम की दीवार बीच में खड़ी हो तो रिश्तों का जुड़ना सहज नहीं होता, सुंदर संदेश देती रचना
तेरे नन्हे भी खुलके बढेंगे नहीं ।
ये "मैं " न जाने क्यों इतना हावी रहता है ।
खूबसूरत ग़ज़ल । ग़ज़ल का हर शेर दिल से निकल हुआ और दिल तक पहुँचा ।
वाह बस वाह
खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं
बहुत खूब कहा आपने,ये रिश्तें जो एक बार बंध गए लाख खींचातानी करों टूटेंगे तो नहीं हाँ,दरार भले पड़ जाये।
एक-एक शेर लाज़बाब ,सादर नमन सुधा जी
तेरे 'मैं' के इस फैलाव की छाँव में
तेरे नन्हे भी खुलके बढेंगे नहीं
छोटी राई का पर्वत बना देख ले
खाइयां पाटकर भी पटेंगे नहीं...बहुत ही सटीक संदर्भों को उठाती हुई खूबसूरत गजल, खासतौर से अहम पर खास चोट कर गई आपकी उत्कृष्ट लेखनी । बहुत शुभकामनाएं सुधा जी ।
घर की देहरी पे जो झुक सकेंगे नहीं
क्या बात है प्रिय सुधा जी! जीवन के विभिन्न संदर्भो पर गहरे चिंतन से भरी रचना में खरी बात मन को छू गयी! सच में अपने हर हाल में अपने होते हैं और निजदेहरी के लिए मान क्या अभिमान क्या!! सटीक विमर्श 👌👌👌👌भावपूर्ण लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹💐❤🙏
गहन भाव सृजन
आपकी इस अनुपम रचना के अवलोकन के तहत अचानक रचना की तिथि पर निगाह गयी और तत्कालीन प्रतिक्रिया करने वालों की लम्बी फेहरिस्त पर भी सरसरी निगाह बरबस चली गयी .. मालूम नहीं इन दिनों ये या वे लोग कैसे हैं और कहाँ हैं .. सभी स्वस्थ ही होंगे .. शायद ...
सही कहा मन के रिश्ते मजबूत होता होते हैं परन्तु खून के रिश्तों पर भी यदि मन लगायें तो थोड़ी मजबूती व़े भी पा लें ..शायद..
और हाँ सच में अब ब्लॉग जगत सूना -सूना है पहले सी रौनक नहीं रही । पर आते रहिएगा दुबारा रौनक लाने की कोशिश करते हैं । वो कहते हैं न , एक और एक ग्यारह...