बच्चों के मन से
माँ ! तुम इतना बदली क्यों?
मेरी प्यारी माँ बन जाओ,
बचपन सा प्यार लुटाओ यों
माँ तुम इतना बदली क्यों?
बचपन में गिर जाता जमीं पर,
दौड़ी- दौड़ी आती थी।
गले मुझे लगाकर माँ तुम,
प्यार से यों सहलाती थी।
चोट को मेेरी चूम चूम कर ,
इतना लाड़ लड़ाती थी।
और जमीं को डाँट-पीटकर
सबक सही सिखाती थी।
अब गिर जाता कभी कहीं पर,
चलो सम्भल कर, कहती क्यों।
माँ ! तुम इतना बदली क्यों?
जब छोटा था बडे़ प्यार से,
थपकी देकर सुलाती थी।
सही समय पर खाओ-सोओ,
यही सीख सिखलाती थी।
अब देर रात तक जगा-जगाकर,
प्रश्नोत्तर याद कराती क्यों?
माँ! तुम इतना बदली क्यों?
सर्दी के मौसम में मुझको,
ढककर यों तुम रखती थी।
देर सुबह तक बिस्तर के,
अन्दर रहने को कहती थी।
अब तड़के बिस्तर से उठाकर,
सैर कराने ले जाती क्यों?
फिर जल्दी से सब निबटा कर,
स्कूल जाओ कहती क्यों?
माँ तुम इतना बदली क्यों?
आज को मेरा व्यस्त बनाकर,
कल को संवारो कहती क्यों?
माँ! तुम इतना बदली क्यों?
टिप्पणियाँ
सादर आभार।
बच्चे का मासूम प्रश्न।
बहुत सुंदर रचना प्रिय सुधा जी।
सस्नेह।
सहृय धन्यवाद एवं आभार आपका।
बहुत प्यारी रचना