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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हायकु

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1. लॉकडाउन बछिया को दबोचे कुत्तों का झुण्ड 2. चैत्र की साँझ~ कुटी द्वार पे वृद्धा बजाए थाली 3. कोरोना रोग~ भू में पड़े रुपये ताकते लोग 4. कोरोना व्याधि~ रुग्ण शिशु लेकर सड़क पे माँ 5. अनलॉक 1~ श्रमिक ने बनाई काँस की कुटी 6. लॉकडाउन~ तरणताल मध्य कूदे बन्दर 7. ज्येष्ठ मध्याह्न~ गुलमोहर छाँव  लेेेटा पथिक 8. समुद्र तट~ हाथ पकड़े बैठे प्रेमी युगल 9. चारणभूमि~ महिषि पीठ पर बैठा बगुला 10. निर्जन पथ~ माँ की गोद में मरा बीमार बच्चा 11. प्रसूति कक्ष~ माता शव के साथ नवजातक 12. सरयू तट~ मास्क पहने सन्त भू-पूजन में 13. पहाड़ी खेत~ पटेला में बालक  को खींचें बैल 14. राष्ट्रीय पर्व~ सड़क पर फेंका तिरंगा मास्क 15. कोरोना काल~ पुष्पपात्र में फैली गिलोय बेल

अनपढ़ माँ की सीख

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                               अभी ही कॉलेज जाना शुरू किया छवि ने। स्कूली अनुशासन से मुक्त उसके तो जैसे पर ही लग गये अपनी ही कल्पनाओं में खोयी रहती । माँ कुछ पूछे तो कहती ; माँ ! आप ठहरी पुराने जमाने की अनपढ़,समझ  नहीं पाओगी। आज माँ ने उसे फोन पर सखियों से कहते सुना कि मुझे मेरे कॉलेज के लड़कों ने दोस्ती के प्रस्ताव भेजें हैं, समझ नहीं आता किसे हाँ कहूँ और किसे ना...। तो माँ को उसकी चिन्ता सताने लगी,कि ऐसे तो ये गलत संगति में फंस जायेगी। पर इसे समझाऊँ भी तो कैसे ?.. बहुत सोच विचार कर माँ ने उसे पार्क चलने को कहा।  वहाँ बरसाती घास व कंटीली झाड़ देखकर छवि बोली;   "माँ! यहाँ तो झाड़ी है, चलो वापस चलते हैं"!    माँ बोली ;  "इतनी भी क्या जल्दी है ? जब आये हैं तो थोड़ा घूम लेते हैं न"। "पर माँ देखो न कँटीली घास"! छवि ने कहा "छोड़ न बेटा ! देख फूल भी तो हैं" कहते हुए माँ उसे लेकर पार्क में घुस गयी थोड़ा आगे जाकर बाहर निकले तो अपने कपड़ों पर काँटे चुभे देखकर छवि  कुढ़़कर बोली "माँ! देखो,कितने सारे काँटे चुभ गये हैं"। कोई नहीं झाड़ देंगे। देखना कोई फूल भी

'वृद्धाश्रम'-- दूजी पारी जीवन की....

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ऐसी निष्ठुर रीत से उनकी ये प्रथम मुलाकात हुई काटे से ना कटती थी वो ऐसी भयावह रात हुई शब्द चुभे हिय में नश्तर से नयनों से लहू टपकता था पतझड़े पेड़ सा खालीपन मन सूनेपन से उचटता था कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये कण्टक की बरसात हुई काटे से ना कटती थी वो ऐसी भयावह रात हुई फिर पत्थर सा हुआ हृदय आँखों में नीरवता छायी एक असहनीय मजबूरी वृद्धाश्रम तक ले आयी मोह का धागा टूट गया जाने ऐसी क्या बात हुई काटे से ना कटती थी वो ऐसी भयावह रात हुई नये सिरे से शुरू था जीवन नहीं मृत्यु से ही भय था दूजी पारी थी जीवन की दूजा ही ये आश्रय था अपलक स्तब्ध थी आँखें उम्र ढ़ली शुरुआत हुई काटे से ना कटती थी वो ऐसी भयावह रात हुई                 चित्र साभार गूगल से...

पीरियड

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                       "पीरियड ! कौन सा"? राहुल ने जैसे ही कहा लड़कियाँ मुँह में हाथ रखकर हा!..कहते हुए एक दूसरे को देखने लगी,  राहुल-  "अरे!क्या हुआ ? अभी नेहा किस पीरियड की बात कर रही थी"?  रश्मि(गुस्से में )- "शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते हुए, अभी मैम को बताते हैं। " सभी लड़कियाँ क्लासटीचर से राहुल की शिकायत करने चली गयी और मैम को सब बताते हुए बोली कि कल भी इसने नेहा के बैग में रखे पैड के बारे में पूछा कि ग्रीन पैकेट में क्या है" ?  क्लासटीचर ने क्रोधित होते हुए राहुल से पूछा तो उसने सहजता से कहा; "जी मैम! मैंने पूछा था इनसे "। "बड़े ढ़ीठ हो तुम! गलती का एहसास तक नहीं, अभी तुम्हारे पैरेंट्स को बताती हूँ", कहकर मैम ने उसके घर फोन किया।  (राहुल अब भी अपनी गलती नहीं समझ पाया ।उसे कक्षा से बाहर खड़ा कर दिया गया)। उधर फोन सुनकर उसके पैरेंट्स सब काम-काज छोड़ हड़बड़ाकर स्कूल पहुँचे।   राहुल की माँ-"मैम!क्या हुआ मेरे बेटे को?वो ठीक तो है न" ? टीचर-"जी!वह तो ठीक है, लेकिन उसकी हरकतें ठीक नहीं हैं, बिगड़ रहा है आजकल । लड़कियों के बैग

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