गीत- मधुप उनको भाने लगा...
मधुर गीत गाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा
पेड़ों की डाली पे झूले झुलाये
फूलों की खुशबू को वो गुनगुनाए
प्रीत के गीत गाकर वो चालाक भँवरा
पुष्पों को लुभाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा ।
नहीं प्रेम उसको वो मकरन्द चाहता
इक बार लेकर कभी फिर न आता
मासूम गुल को बहकाये ये जालिम
स्वयं में फँसाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा ।
सभी फूल की दिल्लगी ले रहा ये
वफा क्या ये जाने नहीं
यहाँ आज कल और जाने कहाँ ये
सदाएं भी माने नहीं
पटे फूल सारे रंगे इसके रंग में
मधुप उनको भाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा ।
ना लौटा जो जाके तो गुल बिलबिलाके
राह उसकी तकने लगे
विरह पीर सहते , दलपुंज ढ़हते
नयन अश्रु बहने लगे
दिखी दूजि बगिया खिले फूल पर फिर
बेवफा गुनगुनाने लगा ।
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा ।
चित्र साभार गूगल से
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टिप्पणियाँ
वफा क्या ये जाने नहीं
यहाँ आज कल और जाने कहाँ ये
सदाएं भी माने नहीं
पटे फूल सारे रंगे इसके रंग में
मधुप उनको भाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा... प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को इस कोरोना काल में याद दिलाने के लिए धन्यवाद सुधा जी
मंच पर साझा करने हेतु....
सादर आभार।
बधाई
पढ़ें--लौट रहें हैं अपने गांव
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मधुप उनको भाने लगा
बहुत सुंदर नवगीत
सस्नेह आभार।
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फुर्सत मिले तो नाचीज की देहलीज पर भी आए
संजय भास्कर
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