सुख-दुख
फर्ज तो है एहसान नहीं ।
फर्ज है हमारे सर पर,
कोई भिक्षा या दान नहीं ।
दुख सहना किस्मत के खातिर,
कुछ सुख आता पर दुख आना फिर ।
दुख सहना किस्मत के खातिर ।
दुख ही तो है सच्चा साथी
सुख तो अल्प समय को आता है ।
मानव जब तन्हा रहता है,
दुख ही तो साथ निभाता है ।
फिर दुख से यूँ घबराना क्या ?
सुख- दुख में भेद बनाना क्या ?
जीवन है तो सुख -दुख भी हैं,
ख्वाबों मे सुख यूँ सजाना क्या ?
एक सिक्के के ही ये दो पहलू
सुख तो अभिलाषा में अटका
दुख में अटकलें लगाना क्या ?
मानव रूपी अभिनेता हम
सुख-दुख अपने किरदार हुए. ।
जो मिला सहज स्वीकार करें
सुख- दुख में हम इकसार बने ।
टिप्पणियाँ
पाँच लिंकों का आनन्द परआप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुख-दुख अपने किरदार हुए. ।
जो मिला सहज स्वीकार करें
सुख- दुख में हम इकसार बने ।
बहुत ही मुश्किल होता है इस बात को स्वीकार करना, यदि कर लिया तो जीवन सहज ना हो जाए। हृदय स्पर्शी सृजन सुधा जी 🙏
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।