"पुष्प और भ्रमर"
तुम गुनगुनाए तो मैने यूँ समझा
प्रथम गीत तुमने मुझे ही सुनाया
तुम पास आये तो मैं खिल उठी यूँ
अनोखा बसेरा मेरे ही संग बसाया ।
हमेशा रहोगे तुम साथ मेरे,
बसंत अब हमेशा खिला ही रहेगा
तुम मुस्कुराये तो मैंं खिलखिलाई
ये सूरज सदा यूँ चमकता रहेगा ।
न आयेगा पतझड़ न आयेगी आँधी,
मेरा फूलमन यूँ ही खिलता रहेगा।
तुम सुनाते रह़ोगे तराने हमेशा
और मुझमें मकरन्द बढता रहेगा।
तुम्हें और जाने की फुरसत न होगी
मेरा प्यार बस यूँ ही फलता रहेगा ।।
"मगर अफसोस" !!!
तुम तो भ्रमर थे मै इक फूल ठहरी
वफा कर न पाये ? / था जाना जरूरी ?
मैंं पलकें बिछा कर तेरी राह देखूँ
ये इन्तजार अब यूँ ही चलता रहेगा ।
मौसम में जब भी समाँ लौट आये
मेरा दिल हमेशा तडपता रहेगा
कि ये "शुभ मिलन" अब पुनः कब बनेगा
सुधा देवरानी*
टिप्पणियाँ
तुम गुनगुनाए तो मैने यूँ समझा........
प्रथम गीत तुमने मुझे ही सुनाया
तुम पास आये तो मैं खिल उठी यूँ.....
अनोखा बसेरा मेरे ही संग बसाया ।
शुभकामनाएँ ....व बधाई
सस्नेह आभार...।
सस्नेह आभार...।
सादर आभार...।
सादर आभार।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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आँचल पाण्डेय
सस्नेह आभार।
सुंदर भावपूर्ण सृजन ,आपको नमन।
वफा कर न पाये ? / था जाना जरूरी ? ....सदियों से चली आ रही ये एक शाश्वत स्थिति है, इसपर बहुत ही गज़ब का लिखा है सुधा जी
सादर आभार...।
सादर आभार...।
बहुत खूब
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बेफाओं से क्यों कर कोई उम्मीद करे ।
अप्रतिम।