सोमवार, 11 मार्च 2024

मरे बिना स्वर्ग ना मिलना

Story nayisoch



 कंधे में लटके थैले को खेत की मेंड मे रख साड़ी के पल्लू को कमर में लपेट उसी में दरांती ठूँस बड़े जतन से उस बूढ़े नीम में चढ़कर उसकी अधसूखी टहनियों को काटकर फैंकते हुए वीरा खिन्न मन से अपने में बुदबुदायी, "चल फिर से शुरू करते हैं । हाँ ! शुरू से शुरू करते हैं, एक बार फिर , पहले की तरह"। 

फिर धीरे-धीरे उसकी बूढ़ी शाखें पकड़ नीचे उतरी। लम्बी साँस लेकर टहनी कटे बूढ़े नीम को देखकर बोली, "उदास मत हो ,  अब बसंत आता ही है फिर नई कोंपल फूटेंगी तुझ पर । तब दूसरों की परवाह किए बगैर लहलहाना तू, और जेष्ठ में खूब हराभरा बन बता देना इन नये छोटे बड़बोले नीमों को, कि यूँ हरा-भरा बन लहलहाना मैंने ही सिखाया है तुम्हें" ! बता देना इन्हें कि बढ़ सको तुम खुलकर इसलिए मैंने अपनी टहनियां मोड़ ली,पत्ते गिरा दिये ,जीर्ण शीर्ण रहकर तुम्हारी हरियाली देख और तुम्हें बढ़ता देख खुश होता रहा पर तुम तो मुझे ही नकचौले दिखाने लगे" !

दराँती को वहीं रखकर कमर में बंधे पल्लू को खोला और बड़े जतन से लपेटते हुए सिर में ओढ़ थैला लिए वीरा चलने को थी कि पड़ोसन ने आवाज लगायी , 

"वीरा ! अरी ओ वीरा ! आज बरसों बाद आखिर काट ही लिया तूने ये बूढ़ा नीम ! पर ये क्या ! ऊपर ही ऊपर काटा ? अरे ! जड़ से काट लेती, सर्दियों में धूप तो सेंकते । वैसे भी इसकी अब क्या जरूरत ! इत्ते सारे और नीम उग ही आये हैं यहाँ । अब ये ना भी रहे तो क्या फरक पड़ जायेगा ? और ये झोला लिए कहाँ जा रही है ?

"चुप कर सरला ! टोकने की आदत ना छोड़ी तूने ! अब पूछ ही बैठी है तो बताए देती हूँ , हाँ ! काट छाँट लिया है मैंने ये बूढ़ा नीम । पर इसे उगटाने के लिए नहीं , और अच्छे से हरियाने के लिए ।  क्यों ना फरक पड़ेगा इसके ना होने से ? अरे ! बड़ा फरक पड़ेगा!  तुझे नहीं तो ना सही , मुझे पड़ेगा और इसे तो पड़ेगा ही। होंगे बतेरे नये नीम उगे हुए , पर इसके लिए थोड़े ना है ।  सब इसी से हैं पर इसके लिए कोई नहीं । कड़वा सा मुँह बनाकर  आगे बोली,  "जिसको इसकी फिकर नहीं ये भी अब उनकी फिकर नहीं करेगा । देख लेना फिर से हरियायेगा ये"।

सरला समझ गयी कि वीरा को लगी है कहीं गहरे में,.गहरी सी..। उसे भी तो लगती है आये दिन अपनों की रूखाई से, पर बेबसी है । अब उन्हीं के सहारे ही तो जीना है,फिर क्या कहना,.. क्या सोचना ! 

पास जाकर कंधे में हाथ रखकर बोली, छोड़ ना क्या देखना ! अपना-अपना भाग , अपने-अपने करम । पर बुढ़ाना तो सभी ने है । यही होना है सबका । छोड़ जाने दे, दिल पे मत लगाया कर !

"छोड़ ही दिया है मैंने तो सरला" ! पर मैं ना बेबस हूँ और ना ही मजबूर" ।  हाथ झाड़ते हुए सिकुड़ी आँखों से आसमान की ओर देखा झुर्रियों भरे माथे पर बल दे ठंडी साँस लेते हुए बोली, "जिंदगी का तजुर्बा तो है न, काम ही आवेगा ! बाकी चार दिन ही तो बचे हैं जीवन के , कट ही जायेंगे जैसे - तैसे" । 

सुनकर सरला ने आश्चर्य से पूछा, "अब कौन से तजुर्बे की बात कर रही है ? सुई में धागा ना डलेगा अब" ! 

"ना डले तो ना सही ।  तमाम बहू बेटियाँ जो सीखना चाहेंगी वही डालेंगी न सुई में धागा" । कहते हुए वीरा मुस्कुरायी ।

"अच्छा तो अब सिलाई सिखायेगी ! ये बढ़िया है । तेरा तो हो गया जुगाड़, पर हमारा क्या होना" ! सरला ने कहा तो वीरा बोली , "चाहे तो तू भी कर सके है अभी भी अपना जुगाड़" !

"मैं !?! अरे मैं क्या कर सकूँ अब ? जीवन भर बस चौका- चूल्हा किया और बच्चे पाले , और कुछ तो सीखा ही ना कभी" । तभी वीरा बोली "हाँ  !  वही तो !  बच्चे तो पाले हैं न ! अभी भी तो सम्भालती है नाती पोतों को । दो-चार और सम्भाल ले ! ये भी तो तजुर्बा ही है ।अड़ोस -पड़ोस में कितनी ही कामकाजी औरतें अपने छोटे बच्चों के कारण घर बैठ हो गयी हैं । कल को उनकी दशा भी हम सी ही होनी है। अच्छा है न, हम उन्हें निभायें वो हमें निभा लें । समझी कुछ" ?

"शिशुपालन गृह" ! कहते हुए सरला का चेहरा चमक उठा । फिर अगले ही पल निराश होकर बोली , "हो नी पायेगा मुझसे अकेले" ।

"अकेले क्यों करना , और भी तो हैं  साथी हमारे । उमर काटी है एक दूसरे के सुख - दुख में,  साथ मिलकर रोये और हँसे हैं । अब बुढ़ापे का बोझ भी मिलकर उठाते हैं न "।

"ये ठीक है वीरा ! सबका यही हाल है ,चल पहल करते है"। 

"हाँ सरला ! करना ही पड़ेगा, ऐसे क्यों हाथ पैर होते हुए हाथ पर हाथ धरे मौत का इंतजार करना। या फिर दूसरों का मुँह ताकते हुए खरी खोटी सहना । जितना हो सके अपने लिए अपने आप कुछ करने की कोशिश करते हैं ज्यादा नहीं तो लून रोटी का जुगाड़ तो हो ही जायेगा । अब जमाना बदल गया तो हम भी बदल जाते हैं"। 

"हाँ वीरा ! इसीलिए कहते हैं  'मरे बिना स्वर्ग न मिलना'। अब स्वर्ग जाना है तो मरना पड़ेगा न। इज्ज़त से जीना हैं तो अपने बल पर जीना होगा । तो जीते हैं अपने बल" !

दोनों दूसरे का हाथ पकड़कर हँसने लगी ।



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●  बदलाव - अपनों के खातिर



रविवार, 3 मार्च 2024

जो घर देखा नहीं सो अच्छा

 

Golden Cage

 एक चिड़िया ने अपने बच्चों को शहर के पॉश इलाकों में घुमाने का प्रोग्राम बनाया । जो उनके नीड़ से काफी दूर था । चिड़िया और उसके नन्हें बच्चे वहाँ जाने के लिए बहुत उत्साहित थे । 

अगले दिन बड़े तड़के सुबह ही उन्होंने उड़ान भर दी । थोड़ी देर में वे सुन्दर आलीशान भवनों और ऊँची -ऊँची इमारतों को देखकर बहुत ही खुश और आश्चर्यचकित थे, और चूँ-चूँ कर अपनी ही भाषा में अपनी माँ से उत्सुकतावश तरह तरह के सवाल कर रहे थे , माँ चिड़िया भी अपने बच्चों को बड़े लाड़ से उनके सवालों के जबाब में ही जीवन के गुर भी सिखाये जा रही थी । 

वहाँ के बाग बगीचे साफ-सुथरे और फूलों से लदे थे , जिन पर तरह तरह की रंग-बिरंगी तितलियों को मंडराते देखकर नन्हीं चिड़ियों की खुशी का तो ज्यों ठिकाना ही न था । और माँ चिड़िया अपने बच्चों (नन्हीं चिड़ियों) की खुशी से अत्यंत खुश थी ।

वे हर एक चीज को देखते और उसकी तुलना अपने इलाके की चीजों से करते हुए इधर-उधर फुर्- फुर्र उड़े जा रहे थे ।  यूँ ही बतियाते उड़ते - उड़ते वे सभी एक बहुमंजिली इमारत की छत में बनी पानी की टंकियों में बैठे तो वहाँ बने टेरेस गार्डन को देखते ही रह गये । 

सुंदर हरे-भरे सदाबहार पौधों और सुगंधित रंग-बिरंगे पुष्पों से सजा ये टेरेस गार्डन अपने-आप में अनोखा इसलिए भी था, क्योंकि इसमें कुछ सुनहरे पिंजड़े लटक रहे थे, जिनमें सुन्दर-सुन्दर पंछी बंद थे, जो बहुत ही सुरीली चहचहाहट के साथ कोई मधुर सुरमई संगीत गुनगुना रहे थे । उनके हर पिंजड़े में खूब सारे स्वादिष्ट एवं विशिष्ट खाद्यान्न यूँ ही पड़े थे ।

चिड़िया और उसके बच्चे उन पंछियों के भाग्य पर बलिहारी जा रहे थे । वे उन सुनहरे पिंजड़ों की तुलना अपने टूटे फूटे सूखे नीड़ से करने लगे, साथ ही ऐसे-ऐसे खाद्यान्न जिनकी कल्पना तक उन्होंने स्वप्न में भी नहीं की, उन्हें देखकर चिड़िया के बच्चे ललचा गये और अपनी माँ से उन्हें खाने की जिद्द करने लगे ।

कुछ देर बाद उन बंद पंछियों का सुरमई संगीत खत्म हुआ तो वे दुखी मन आकाश की ओर ताकने लगे । तभी चिड़िया ने देखा कि उनमें एक चिड़िया उसकी बचपन की सखी लग रही है , तो वह चूँ-चूँ कर उसके पास जाकर उसके पिजड़े के तारों को पकड़ने की कोशिश में फड़फड़ाने लगी।

 पिंजड़े में बंद पक्षी ने भी उसे देखा और नजर मिलते ही उसने भी अपनी सखी को पहचान लिया । भावविभोर होकर दोनों की आँखों से आँसू टपकने लगे। बंद पक्षी अपनी सखी के गले लगने को फड़फड़ाई तो उस सुनहरे पिंजड़े की मजबूत तारों से टकराकर उसके पंख टूटकर बिखरने लगे , वह दर्द से कराह उठी और वापस अपनी जगह बैठकर टुकर-टुकर लाचार सी अपनी सखी को बस देखती रह गई ।

दोनों ने एकदूसरे की कुशलक्षेम पूछी तो बाहर वाली चिडिय़ा ने उसे अपने नन्हें बच्चों से मिलवाया । फिर उस इलाके एवं उस सुंदर टेरेस गार्डन की प्रशंसा के साथ उसकी खुशकिस्मती एवं उसके मालिक की सहृदयता का गुणगान करने लगी, जिसने इतने खूबसूरत पिंजड़े में इतने सारे विशेष खाद्यान्नों के साथ उसे इतनी आरामदायक और खुशहाल जिंदगी दी है ।

उसकी बातें सुन पिंजड़े में बंद चिड़िया अनमने से मुस्कराई और पिंजड़े को हिलाकर कुछ अन्न के दाने नीचे फेंकती हुई उदास होकर बोली , "सखी ! ये कुछ दाने बच्चों को खिलाकर फौरन यहाँ से चली जाओ ! यहाँ के ऐश्वर्य पर मन लगाकर यहाँ रुके तो यहीं फँसकर रह जाओगे। बस इतना समझने की कोशिश करना कि मैं इतनी ही खुशकिस्मत होती और यहाँ के मालिक इतने सहृदय होते तो इस सुनहरे पिंजड़े का दरवाजा बंद ना होता । बस ये समझो कि जो घर देखा नहीं सो अच्छा " !

चिड़िया के बच्चे बड़े लालच में फटाफट स्वादिष्ट खाद्यान्नों को चुग-चुग कर मजे ले ही रहे थे कि तभी किसी की पदचाप की आहट सुन माँ चिड़िया अपने बच्चे को जबर्दस्ती वहाँ से उड़ा ले चली ।

वापस अपने नीड़ में आकर जब चिड़िया के बच्चे वहाँ की बढ़ा-चढ़ाकर तारीफ कर रहे थे , तब माँ चिड़िया की आंखों में अपनी सखी का उदास चेहरा घूम गया । और वह अपने बच्चों को अपने डैने में समेटते हुए बोली, "जो घर देखा नहीं सो अच्छा "



पढ़िए एक और कहानी 

पराया धन - बेटी या बेटा






गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

लघुकथा - विडम्बना



Short story





 "माँ ! क्या आप पापा की ऐसी हरकत के बाद भी उन्हें उतना ही मानती हो " ?  

अपने और माँ के शरीर में जगह-जगह चोट के निशान और सूजन दिखाते हुए बेटे ने पूछा ।

आँसुओं का सैलाब लिए माँ बेटे के उन जख्मों को सहलाती रही जो पापा की मार से उसे को बचाते समय लगे, परन्तु कुछ कह ना सकी तो बेटा बोला, "माँ ! मैं अब बड़ा हो गया हूँ, समझ और सहनशक्ति जबाब दे रही है, आपके पति-परमेश्वर की इन हरकतों के विरोध में मेरी जुबान या हाथ चलें, इससे पहले मैं घर छोड़कर कहीं दूर जा रहा हूँ , क्योंकि मैं भी आपकी नफरत बरदाश्त नहीं कर पाउँगा" । 




  पढिए एक और लघुकथा 




गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

तेरी रहमत पे भरोसा है मुझे


Nayisoch

धू - धू कर धधकती आग और लौंकते धुएं को देखा तो उस नन्हीं चिड़िया का ख्याल आया जिसने उस काँस की घास से भरे बड़े से प्लॉट के बीच खड़े उस बबूल के पेड़ पर अपना नीड़ बनाया है ।

कुछ दिनों से छत पर धूप सेंकते वक्त उसे देखती रही तो एक अलग ही लगाव हो गया उससे ।

धधकती आग देखकर व्याकुल मन मे तुरंत उसी चिड़िया का ख्याल आया तो मन ही मन बड़बड़ाई, "अरे ! उसके बच्चे तो अभी बहुत छोटे हैं , उड़ नहीं सकते । अजीब सी हलचल मच गई मन में । झट से सीढ़ियाँ चढ़ते हुए छत में गई तो देखा आग सूखी काँस पर बड़ी तेजी आगे बढ़ रही है ।

क्या करूँ ! कैसे बचाऊँ इसके नन्हें चूजों को ? मन में बेचैनी बढ़ी तो सोसायटी इंचार्ज को फोन किया । वे बड़े आश्वस्त होकर बोले, "आग से डरने वाली बात ही नहीं है । प्लॉट के ऑनर ने फायर बिग्रेड की सुविधा कर रखी है कोई अनहोनी पहले तो होगी नहीं अगर लगा तो सामने ही सब समाधान है आप निश्चिंत रहिए" ।

क्या कहती कैसे निश्चिंत रहूँ ? बेचारी चिड़िया का घोसला और उसके नन्हें बच्चे ..  ?  खैर... कौन समझता इन बातों को...!

अब कोई सहारा न पाकर मैं बस उस बेबस चिड़िया को देखने लगी बेबसी से । हाँ बेबसी इसलिए कि हमारे अपार्टमेंट से वहाँ जाने का नजदीक से फिलहाल कोई रास्ता नहीं है।

मैंने देखा बहुत सारी चिड़ियाएं कलरव करती हुई आई , उस बबूल पर बैठी और फिर वैसे ही कलरव करते हुए उड़ गयी । मुझे लगा शायद सबके साथ वह चिड़िया भी उड़ गई होगी ।

ध्यान से देखा तो नहीं उड़ी वह !  कैसे उड़ती ? माँ जो है । वह तो उसी बबूल की हर टहनी में बेचैनी से इधर उधर फुदक-फुदक कूदती- फाँदती फिर अपने नन्हें बच्चों के पास आती, जैसे कोई रास्ता ढूँढ़ रही हो इस मुसीबत से निकलने का ।

आग बासंती बयार का साथ पाकर और तेज गति से सूखे काँस पर बढ़ती जा रही थी । और आग की धधकार के साथ ही मेरी धड़कन भी उसी गति से तेज और तेज...

एक समय ऐसा आया कि आग बबूल के बहुत करीब और चारों तरफ फैल गयी , चिड़िया अब शांत अपने बच्चों के ऊपर बैठ गई घोंसले में । जैसे उसकी सारी बेचैनी खत्म हो गई हो ।

मेरी धड़कनों का शोर भी तब थम सा गया जब धुएं में बबूल का पेड़ दिखना ही बंद हो गया। मैंने आँखें भींच ली तो अंदर का दर्द रिसने लगा आँसुओं के साथ ।  

कहीं आसपास से भजन की आवाज आ रही थी ।


तेरी रहमत पे भरोसा है मुझे,

काज मेरे बिगड़े सँवर जायेंगे ।

जब कोई मुश्किल होगी सामने,

पार मुझे सतगुरू जी लगायेंगे ।

तेरी रहमत पे भरोसा.....


लगा जैसे वही चिड़िया अरदास कर रही है ।  हाथ जुड़ गये और मन उस असीम की चौखट पर गिड़गिड़ाने लगा ।

कुछ ही देर में लपटों की धू - धू शांत होती सी महसूस हुई । भयभीत मन , बड़ी मुश्किल से आँखें खोली तो दंग रह गयी ! बबूल के पेड़ पर चिड़िया फिर टहनी टहनी फुदक रही थी और उसके बच्चे नीड़ में चूँ चूँ कर चोंच खोले कलरव मचा रहे थे। एक बार फिर आँख बंद कर इस चमत्कार के लिए उस असीम का धन्यवाद किया।

हुआ ये कि जहाँ तक बबूल की छाया रही , वहाँ तक काँस की घास सूखी नहीं थी । काँस हरी होने से आग आगे नहीं बढ़ी और बबूल का पेड़ और चिड़िया का घोंसला दोनों सुरक्षित रह गये । पर पहले ऐसी कोई सम्भावना भी मन में नहीं आई तो उस वक्त ये सिर्फ चमत्कार लग रहा था ।

अब सामने चिड़िया को उसके परिवार सहित सकुशल देखकर मन आह्लादित है।




पढ़िए एक और कहानी-

जो घर देखा नहीं सो अच्छाl




सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

राम एक संविधान




Ram mandir ayodhya

 





मनहरण घनाक्षरी छंद


गूँज उठी जयकार,

तोरण से सजे द्वार,

पाँच शतक के बाद,

शुभ दिन आये हैं !


कौशल्या दुलारे राम,

दशरथ प्यारे राम,

पधारे अवध धाम,                     

मंदिर बनाये हैं ।


सज्ज हुआ सिंहद्वार,

सज्ज राम दरबार,

पंच मंडपों के संग,

देवता दर्शाए हैं ।


प्रिय शिष्य हनुमान,

करेंगे सभी के त्राण,

राम राजकाज हेतु,

गदा जो उठाये हैं ।


सिया राम परिवार,

सुखप्रद घरबार,

नयनाभिराम अति,

आसन सजाये हैं ।


राम राज अभिषेक,

प्राण-प्रतिष्ठा को देख,

शिशिर में भी भक्तों के,

जोश गरमाये हैं ।


राम आरती अजान ,

राम एक संविधान,

भारती के प्राण राम,

भक्त मन भाये है ।


इष्ट में विशिष्ट राम,

शिष्ट में प्रकृष्ट राम,

हर्ष के विमर्श बन,

विश्व में समाये हैं ।



पढ़िए श्रीगणेश जी स्तुति

गणपति वंदना










मरे बिना स्वर्ग ना मिलना

 कंधे में लटके थैले को खेत की मेंड मे रख साड़ी के पल्लू को कमर में लपेट उसी में दरांती ठूँस बड़े जतन से उस बूढ़े नीम में चढ़कर उसकी अधसूखी टहनिय...