आत्महत्या : माँ मेरी भी तो सुन लिया करो !
"माँ ! मैं बहुत परेशान हूँ , आप आ जाओ ना यहाँ मुझे मिलने, मुझे आपसे बात करनी है" ।
"बेटा परेशानियां तो आती जाती रहती हैं जीवन में , इनसे क्या घबराना । और मैं तेरे ससुराल आकर क्या करूँगी ! तेरे ससुराली मुझे देखकर पता नहीं क्या सोचेंगे, कहीं और न चिढ़ जायें । वैसे मैंने पंडित जी से तेरी और दामाद जी की कुण्डली दिखाई । कुछ ग्रहदोष हैं तो कल ग्रहशांति के लिए जप करवा रही हूँ, तू चिंता न कर ग्रहशांति के बाद सब ठीक हो जायेगा । सब्र से काम ले" ।
"माँ ! मैं जब भी आपसे बात करती हूँ आप पंडित और ग्रहदोष की बातें करने लगते हो , कभी मेरी भी तो सुन लिया करो ना" ! (माँ की बात बीच में काट कर सुषमा ने नाराज होते हुए कहा और फोन रख दिया)
शीला को उसकी बहुत फिक्र थी परन्तु बेटी के घर का मामला है हमारे हस्तक्षेप से बात और ना बिगड़ जाय, यही सोचकर ना चाहते हुए भी टाल रही थी उसे।
अगले दिन शीला ने मंदिर में ग्रहशांति की पूजा रखवायी और बेटी के घर की सुख-शांति के लिए उपवास रखकर पूजन में बैठी ही थी कि तभी सुषमा का फोन आया ।
"माँ ! मैं बड़ी मुश्किल से इधर-उधर के बहाने बनाकर घर आई तो आप तो घर पर हैं ही नहीं । माँ प्लीज ! थोड़ी देर के लिए जल्दी से आ जाओ फिर मुझे निकलना है"।
"अरे ! कैसे आऊँ ? मैं तो पूजा में हूँ और पूजा से बीच में उठना अशुभ होता है बेटा ! और सुन, तू आई क्यों ? वहाँ सब इस बात से और भी नाराज हो जायेंगे तुझसे । सुषमा बेटा ! समझदारी से काम ले । इससे पहले कि उन्हें शक हो तू अभी का अभी वापस जा ! मैं पूजा के बाद कॉल करूँगी तुझे । ठीक है" । कहकर फोन रखकर शीला फिर पूजा में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी ।
पूजन समाप्ति के साथ ही बेटी की जीवन लीला भी समाप्त हो गयी । उसी साँझ सूचना मिली कि तुम्हारी बेटी ने आत्महत्या कर दी। पंखे से लटकी लाश को पुलिस शिनाख्त के लिए ले जा रही है । तुम लोग आना चाहते हो तो जल्दी आ जाओ ।
टिप्पणियाँ
मार्मिक...
सादर...
वैसे कई बार बहुत छोटी छोटी बात पर भी बात बढा चढ़ा कर बता दी जाती है । ऐसे मामलों को बहुत धैर्य से ही सुलझाया जा सकता है ।।
विचारणीय लघु कथा ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
अत्यंत आभार एव धन्यवाद आपका।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
Nice story highlighting this shortcoming in our society.
मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
सादर,
डॉ विभा नायक