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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वृद्धावस्था

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वृद्धावस्था                   चित्र, साभार pixabay से... सोच में है थकन थोड़ी, अक्ल भी कुछ मन्द सी। अनुभव पुराने जीर्ण से,  बुद्धि भी कुछ बन्द सी। है कमर झुकी - झुकी , बुझे - बुझे से हैं नयन। हस्त कम्पित कर रहे, आज लाठी का चयन। है जुबां खामोश अब, मन कहीं छूटा सा है। रुग्ण और क्षीण तन, विश्वास भी टूटा सा है। पूछने वाले भी अब, सीख देने आ रहे। जिंदगी ये गोप्य तेरे, मन बहुत दुखा रहे। जन्म से ले ज्ञान पर, अंत सब बिसराव है। शून्य से  हुआ शुरू, शून्य ही ठहराव है।।

छूटे छूटता नहीं और टूटे जो तो जुड़ता भी नहीं पहले सा फिर से..

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  चित्र, साभार pixabay से फिर से कहाँ शुरू होता है न, जो छोड़ दिया जाता है उस समय  कि बाद में करेंगे  पहले सा फिर से....... कितना कुछ छूटा सा है न पीछे  इंतजार में कि कुछ समय  बाद सब ठीक होने पर शुरू करेंगे इसे पहले सा फिर से.... याद है वो नन्हीं प्यारी गुड़िया घंटो खेले जिससे, बतियाये और  खेल - खेल में  जिसका ब्याह रचाये फिर एक दिन माँ ने कहा, "बोर्ड परीक्षा में अच्छे नम्बर  लाने पर मिलेगी  एक और गुड़िया" ! इस लालच में बन्द किया उसे, अलमारी में बनाये उस नन्हें से  डॉलहाउस में ये कहके कि  "जल्द ही लौटेंगे आपसे खेलने  आपके लिए एक और प्यारी सी  सहेली लेकर पहले सा फिर से"....... ऐसे ही तो धरे के धरे रह गये न  बाकियों के भी कंचे, कार्ड  और भी ना जाने क्या -क्या जो न खेल पाये कभी उन्हें पहले सा फिर से .... और इनकी जगह माँग बैठे  लैपटॉप या मोबाइल और भी अच्छी पढ़ाई के नाम से बहुत समझदार बनके...  फिर पढ़ते - लिखते ही  मिले दोस्तों से,...और कुछ दिन कैसे चढ़ा न  खुमार दोस्ती का  ! घूमना, फिरना, हँसना, बोलना... पर ये क्या! कब एकाकी दौड़ने लगे हायर एजुकेशन के लिए कि  समय ही न मिला वैस

पटाखे से जला हाथ

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                  चित्र साभार pixabay.com से इतने सालों बाद भी दीपावली बीतने पर उस छात्र की याद मन को उदास कर देती है ...हर बार मन में ख्याल आता है कि अब वो कैसा होगा....उसके सपने उसे कैसे सालते होंगे... कितना पछताता होगा न वो। हाँ बात 2003 की है ,विनीत आठवीं कक्षा में नया आया था । उसका परिचय पूछते समय जब मैंने उसे पूछा तुम बड़े होकर पढ़-लिखकर क्या बनोगे...? तो वह बोला "मैम ! मैं बड़ा होकर आर्मी ज्वाइन करना चाहता हूँ  और देश की सेवा करना चाहता हूँ। बाकी सारे डॉक्टर्स और इंजीनियर्स बनने वाले बच्चों की कक्षा में ये अकेला 'जवान' मुझे ही क्या  अन्य  सभी टीचर्स को भी बहुत अच्छा लगता था... क्योंकि वह पढ़ने में होशियार और बुद्धिमान तो था ही साथ ही बहुत जिम्मेदार भी था। लेकिन उसी साल दीपावली की छुट्टियों के बाद जब वह स्कूल आया तो हम सभी उसे देखकर स्तब्ध रह गये।उसकी दायीं आँख और हाथ दीवाली के पटाखों की भेंट चढ़ चुके थे .... एक बड़ा बम जो जमीन में फेंकने से पहले ही उसके हाथ में फट गया जिससे उसके दायें हाथ की उँगलियाँ जलकर पीछे की तरफ चिपक गयी और एक आँख जलकर ऐसी फूल गयी कि बगैर काले चश्मे

तमस राज अपना फैला रहा है

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                  चित्र साभार pixabay.com से दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सब वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है... अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है तमस राज अपना फैला रहा है अमा के तमस से सहमा सा जुगनू टिम-टिम चमकने में कतरा रहा है दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सब वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है....। कितनी अयोध्या जगमग सजी हैं पर ना कहीं कोई राम आ रहा है कष्टों के बादल कहर ढ़ा रहे हैं  पर्वत उठाने ना श्याम आ रहा है दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है। अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है तमस राज अपना फैला रहा है.....। कहीं साँस लेना भी मुश्किल हुआ है सियासत का कोहरा गहरा रहा है करेंगे तो अपनी ही मन की सभी पर ढ़ीला हुकूमत का पहरा रहा है दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है तमस राज अपना फैला रहा है.....। बने मुफ्तभोगी सत्ता के लोभी हराकर मनुज को दनुज जी रहा है निष्कर्म जीवन चुना स्वार्थी मन पकड़ रोशनी के वो पंख सी रहा है दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब  वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है तमस राज अपना फैला रहा है......।

कैनल में कैद अब झूठा नबाब

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प्रदत्त चित्र पर हास्यव्यंग रचना चित्र साभार Quora से                            आँखों में चश्मा मुँह में गुलाब,                 हाथ मोबाइल करके आदाब                गले में मोती जड़ा था पट्टा,                चला जो शेरू बनके नबाब                 कदम कदम पर यार मिले,                  चापलूस दो -चार मिले                 मचले मन औ बहके कदम के,                  जी हुजूर सरकार मिले                   आड़ी तिरछी पोज बनाई,                   यो यो वाली फोटो खिंचाई                   टेढी-मेढ़ी सी दुम हिलाकर,                   उठाये पंजे सैल्फी बनाई                  आवारगी की सनक जो थी,                  मालिक बुलाये पर भनक न थी।                  गुर्रा रहा था वो फुल जोश में,                   हंटर पड़ा तब आया होश में                 लोटा जमीं पे वो दुम हिलाकर,                  सारी मस्ती मन से भुलाकर                  चश्मा टूटा और छूटा गुलाब,                   कैनल में कैद अब झूठा नबाब।।

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