वक्त यही अब बोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
देख बुढ़ापा बैठ कनपटी
पोल उम्र की खोल रहा है
जान ले अन्तर्मन में जाकर
क्यों तूने ये जीवन पाया
क्या करना बाकी था तुझको
जो फिर फिर धरती में आया
आधे-अधूरे मकसद तेरे
चित्त चितेरा डोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
माँगा तूने ही ये सबकुछ
जिसपे धड़ीभर अश्रु बहाता
कर्मों के लेखे-जोखे से
सुख-दुख का है गहरा नाता
और किसी को वजह बनाकर
मन में जहर क्यों घोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
साँझ सुरमयी हो जीवन की
तो सूरज सा तपता जा
भव कष्टों से जीव मुक्त हो
दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
कर अनुवर्तन उन कदमों का
जिनका जीवन मोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
देख बुढ़ापा बैठ कनपटी
पोल उम्र की खोल रहा है।।
टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर सृजन।
सादर आभार।
सादर आभार।
पोल उम्र की खोल रहा है।।" .. बड़ी प्यारी "पंच लाइन" गढ़ी है आपने .. सम्पूर्ण संदेशपरक रचना भी .. सच में, कनपटी (अपभ्रंश - कनपट्टी) यानी कलमी के बाल पहले सफ़ेद होकर जीवन के भोर की होती संध्या की ओर इशारा करने लग जाते हैं .. पर आजकल तरह-तरह के उपलब्ध 'हेयर डाई' से इस क़ुदरती सच को अँगूठा दिखला देते हैं .. शायद ...😃😃
साथ ही ..
"साँझ सुरमयी हो जीवन की
तो सूरज सा तपता जा" .. ये बिम्ब भी अच्छा है ... बस यूँ ही ...
(एक Typoerror - धड़ीभर = घड़ीभर) 🙏🙏🙏
पर जो भी है उसका लेखा जोखा समझ कर जो ठीक हो सके उसे ठीक कर लेना बुरा नही है ...
सुधार कर लेना चाहिए ... जब जैसे ...
अच्छी रचना है बहुत ...
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपने इतने ध्यान से रचना पढ़ीइसके लिए तहेदिल से आभार।
सुन्दर प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।
साँझ सुरमयी हो जीवन की
तो सूरज सा तपता जा
भव कष्टों से जीव मुक्त हो
दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
कर अनुवर्तन उन कदमों का
जिनका जीवन मोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
...जीवन सत्य का सुंदर सटीक दर्शन कराती सुधार सार्थक रचना।
आज तो आपने आगाह कर दिया कि अब तो कुछ सोच लिया जाय । यहाँ तो सुरमई सांझ भी बीत रही है रात की कालिमा उत्तर रही है धीरे धीरे । विचार करना तो बनता है ।
यूँ तो शायद ये जीवन मृत्यु सब कर्मों का ही फल है । जो भी ज़िन्दगी में होता है सब कर्मों का फल ही होता है ऐसा कहा जाता है । फिर भी कहाँ कोई रख पाता है लेखा - जोखा ।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
तो सूरज सा तपता जा
भव कष्टों से जीव मुक्त हो
दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
कर अनुवर्तन उन कदमों का
जिनका जीवन मोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है---गहन सृजन...। वाह
अत्यंत आभार आपका।
लेकिन हम तो बुढ़ापे में भी सुधरने से रहे. हम मोमिन की ज़ुबान में कहेंगे -
उम्र सारी तो कटी, इश्क़-ए-बुतां में मोमिन,
आख़िरी वक़्त में, क्या खाक़, मुसलमां होंगे.
"कर अनुवर्तन उन कदमों का जिनका जीवन मोल रहा है"
ये आप जैसे महानुभावों के कदमों का अनुवर्तन करने के लिए ही खुद से कहा गया है सर!
साँझ सुरमयी हो जीवन की तो सूरज सा तपता जा..बस आपकी तरह साँझ सुरमयी करने के लिए
स्वयं से कहा है आप तो बस मार्गदर्शन कर आशीर्वाद बनाए रखें सर!
अत्यंत आभार आपका!
तो सूरज सा तपता जा
भव कष्टों से जीव मुक्त हो
दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
कर अनुवर्तन उन कदमों का
जिनका जीवन मोल रहा है
वाह !!अत्यंत सुन्दर सराहना से परे सीख भरी अभिव्यक्ति।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।