🌜नन्हेंं चाँद की जिद्🌛
भोर हुई पर नन्हें शशि आज आसमान में ही विराजमान हैं पिता आकाश इससे अनभिज्ञ पुत्र रवि के आगमन की शान में हैं। माँ धरती प्रतीक्षा में चिन्तित...... पुत्र शशि की राहें ताक रही । कहाँ रह गया नन्हा शशि....... झुक सुदूर तक झाँक रही । नन्हा शशि तो जिद्द कर बैठा..... मैं आज नहीं घर जाऊँँगा । याद आती है रवि भैया की...... मैं उनसे यहीं मिल पाऊँँगा । धरती माँ ने भेजा संदेशा..... शशि जल्दी से आओ घर ! क्रोधित होंगे आकाश पिता...... तुम क्या करते हो राहों पर ?... शीत की ठण्डी में ठिठुरा मैं..... माँ ! काँप रहा हूँ यहाँ थर-थर । भाई रवि मेरे धूप मुफ्त में...... बाँट रहे हैं ,धरती पर । मिलकर उनसे थोड़ी - सी...... गर्माहट भी ले आऊँगा । याद आती है रवि भैया की..... उनसे मिलकर ही घर आऊँँगा ।। चित्र ;साभार गूगल से...