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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज्येष्ठ की तपिश और प्यासी चिड़िया

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सुबह की ताजी हवा थी महकी कोयल कुहू - कुहू बोल रही थी.... घर के आँगन में छोटी सी सोनल अलसाई आँखें खोल रही थी.... चीं-चीं कर कुछ नन्ही चिड़ियां सोनल के निकट आई...... सूखी चोंच उदास थी आँखें धीरे से वे फुसफुसाई.... सुनो सखी ! कुछ मदद करोगी ? छत पर थोड़ा नीर रखोगी ? बढ़ रही अब तपिश धरा पर, सूख गये हैं सब नदी-नाले प्यासे हैं पानी को तरसते, हम अम्बर में उड़ने वाले..... तुम पंखे ,कूलर, ए.सी. में रहते हम सूरज दादा का गुस्सा सहते झुलस रहे हैं, हमें बचालो ! छत पर थोड़ा पानी तो डालो !! जेठ जो आया तपिश बढ गयी बिन पानी प्यासी हम रह गयी.... सुनकर सोनल को तरस आ गया चिड़ियों का दुख दिल में छा गया अब सोनल सुबह सवेरे उठकर चौड़े बर्तन में पानी भरकर, साथ में दाना छत पर रखती है.... चिड़ियों का दुख कम करती है । मित्रों से भी विनय करती सोनल आप भी रखना छत पर थोड़ा जल ।। चित्र: साभार गूगल से...

पेड़-- पर्यावरण संतुलन की इकाई

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हम अचल, मूक ही सही मगर तेरा जीवन निर्भर है हम पर तू भूल गया अपनी ही जरूरत हम बिन तेरा जीवन नश्वर तेरी दुनिया का अस्तित्व हैं हम हम पर ही हाथ उठाता है, आदम तू भूला जाता है हम संग खुद को ही मिटाता है अपना आवास बनाने को तू पेड़ काटता जाता है परिन्दोंं के नीड़ों को तोड़ तू अपनी खुशी  मनाता है बस बहुत हुआ ताण्डव तेरा अबकी तो अपनी बारी है हम पेड़ भले ही अचल,अबुलन हम बिन ये सृष्टि अधूरी है वन-उपवन मिटाकर,बंगले सजा सुख शान्ति कहाँ से लायेगा साँसों में तेरे प्राण निहित तो प्राणवायु कहाँ से पायेगा..... चींटी से लेकर हाथी तक आश्रित हैं हम पर ही सब तू पुनः विचार ले आदम हम बिन पर्यावरण संतुलित नहीं रह पायेगा ।

सुख का कोई इंतजार....

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                       चित्र :साभार गूगल से" मेरे घर के ठीक सामने बन रहा है एक नया घर वहीं आती वह मजदूरन हर रोज काम पर..... देख उसे मन प्रश्न करता मुझ से बार-बार...... होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इंतजार...? गोद में नन्हा बच्चा फिर से है वह जच्चा सिर पर ईंटों का भार न सुख न सुविधा ऐसे में दिखती बड़ी लाचार.... होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इन्तजार...? बोझ तन से ढो रही वह मन से बच्चे का ध्यान पल-पल में होता उसको उसकी भूख-प्यास का भान... छाँव बिठाकर सिर सहलाकर देती है माँ का प्यार... होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इन्तजार....? जब सब सुस्ताते,थकान मिटाते वह बच्चे पर प्यार लुटाती बड़ी मुश्किल से बैठ जतन से गोदी मेंं अपना बच्चा सुलाती ना कोई शिकवा इसे अपने रब से ना ही कोई गिला इसे किस्मत से जो है उसी में जीती जाती... अचरज होता देख के उसको मुझको तो बार-बार...... होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इंतजार...? लगता है खुद की न परवाह उसको वो माँ है सुख की नहीं चाह उसको संतान सुख ही चरम सुख है उसका उसे पालना ही अब कर्तव्य उ

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