ज्येष्ठ की तपिश और प्यासी चिड़िया
सुबह की ताजी हवा थी महकी कोयल कुहू - कुहू बोल रही थी.... घर के आँगन में छोटी सी सोनल अलसाई आँखें खोल रही थी.... चीं-चीं कर कुछ नन्ही चिड़ियां सोनल के निकट आई...... सूखी चोंच उदास थी आँखें धीरे से वे फुसफुसाई.... सुनो सखी ! कुछ मदद करोगी ? छत पर थोड़ा नीर रखोगी ? बढ़ रही अब तपिश धरा पर, सूख गये हैं सब नदी-नाले प्यासे हैं पानी को तरसते, हम अम्बर में उड़ने वाले..... तुम पंखे ,कूलर, ए.सी. में रहते हम सूरज दादा का गुस्सा सहते झुलस रहे हैं, हमें बचालो ! छत पर थोड़ा पानी तो डालो !! जेठ जो आया तपिश बढ गयी बिन पानी प्यासी हम रह गयी.... सुनकर सोनल को तरस आ गया चिड़ियों का दुख दिल में छा गया अब सोनल सुबह सवेरे उठकर चौड़े बर्तन में पानी भरकर, साथ में दाना छत पर रखती है.... चिड़ियों का दुख कम करती है । मित्रों से भी विनय करती सोनल आप भी रखना छत पर थोड़ा जल ।। चित्र: साभार गूगल से...