नारी : अतीत से वर्तमान तक
कुछ करने की चाह लिए
अस्तित्व की परवाह लिए
मन ही मन सोचा करती थी
बाहर दुनिया से डरती थी......
भावों में समन्दर सी गहराई
हौसले की उड़ान भी थी ऊँची
वह कैद चहारदीवारी में भी,
सपनों की मंजिल चुनती थी....
जग क्या इसका आधार है क्या ?
धरा आसमां के पार है क्या,?
अंतरिक्ष छानेगी वह इक दिन
ख्वाबों में उड़ाने भरती थी.....
हिम्मत कर निकली जब बाहर,
देहलीज लाँघकर आँगन तक ।
आँगन खुशबू से महक उठा,
आँगन खुशबू से महक उठा,
फूलों की बगिया सजती थी........
अधिकार जरा सा मिलते ही,
वह अंतरिक्ष तक हो आयी...
जल में,थल में,रण कौशल में
सक्षमता अपनी दिखलायी.......
बल, विद्या, हो या अन्य क्षेत्र
जल में,थल में,रण कौशल में
सक्षमता अपनी दिखलायी.......
बल, विद्या, हो या अन्य क्षेत्र
इसने परचम अपना फहराया
सबला,सक्षम हूँ, अब तो मानो
अबला कहलाना कब भाया........
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
जब सृष्टि सृजन की थी शुरूआत
सोच - विचार के बनी थी बात.......
क्योंकि.......
दिल से दूर पुरुष था तब,
नाकाबिल, अक्षम, अनायास...
सृष्टि सृजन , गृहस्थ जीवन
हेतु किया था सफल प्रयास.....
पुरूषार्थ जगाने, प्रेम उपजाने,
सक्षमता का आभास कराने ।
कोमलांगी नाजुक गृहणी बनकर,
वृषभकन्धर पर डाला था भार.........
अभिनय था तब अबला होने का
शक्ति हीन कब थी दुर्गा ?......
भ्रम रहा युग-युग से महिषासुर को
रणचण्डी को हराने का.......!!!!!
चित्र: साभार, गूगल से
सबला,सक्षम हूँ, अब तो मानो
अबला कहलाना कब भाया........
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जब सृष्टि सृजन की थी शुरूआत
सोच - विचार के बनी थी बात.......
क्योंकि.......
दिल से दूर पुरुष था तब,
नाकाबिल, अक्षम, अनायास...
सृष्टि सृजन , गृहस्थ जीवन
हेतु किया था सफल प्रयास.....
पुरूषार्थ जगाने, प्रेम उपजाने,
सक्षमता का आभास कराने ।
कोमलांगी नाजुक गृहणी बनकर,
वृषभकन्धर पर डाला था भार.........
अभिनय था तब अबला होने का
शक्ति हीन कब थी दुर्गा ?......
भ्रम रहा युग-युग से महिषासुर को
रणचण्डी को हराने का.......!!!!!
चित्र: साभार, गूगल से
टिप्पणियाँ
सक्षमता का आभास कराने ।
कोमलांगी नाजुक गृहणी बनकर,
वृषभकन्धर पर डाला था भार.........
अप्रतिम रचना आदरणीया
बधाई
सादर
सस्नेह आभार...
सस्नेह आभार..
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8 -3-2020 ) को " अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस " (चर्चाअंक -3634) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सृष्टि की उत्पादिनी की शक्ति को मेरा नमन।
सादर आभार।
नमन आपको एवं आपके विचारों को एवं तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१४-0६-२०२०) को शब्द-सृजन- २५ 'रण ' (चर्चा अंक-३७३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
स्त्री-अस्मिता का विमर्श हरेक काल-खंड में इतिहास रचता रहा है।
सुंदर सृजन।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
वह अंतरिक्ष तक हो आयी...
जल में,थल में,रण कौशल में
सक्षमता अपनी दिखलायी.......बहुत सुंदर ।
सादर आभार।
बहुत बहुत सुंदर सृजन सुधा जी।