"पुष्प और भ्रमर"
तुम गुनगुनाए तो मैने यूँ समझा प्रथम गीत तुमने मुझे ही सुनाया तुम पास आये तो मैं खिल उठी यूँ अनोखा बसेरा मेरे ही संग बसाया । हमेशा रहोगे तुम साथ मेरे, बसंत अब हमेशा खिला ही रहेगा तुम मुस्कुराये तो मैंं खिलखिलाई ये सूरज सदा यूँ चमकता रहेगा । न आयेगा पतझड़ न आयेगी आँधी, मेरा फूलमन यूँ ही खिलता रहेगा। तुम सुनाते रह़ोगे तराने हमेशा और मुझमें मकरन्द बढता रहेगा। तुम्हें और जाने की फुरसत न होगी मेरा प्यार बस यूँ ही फलता रहेगा ।। "मगर अफसोस" !!! तुम तो भ्रमर थे मै इक फूल ठहरी वफा कर न पाये ? / था जाना जरूरी ? मैंं पलकें बिछा कर तेरी राह देखूँ ये इन्तजार अब यूँ ही चलता रहेगा । मौसम में जब भी समाँ लौट आये मेरा दिल हमेशा तडपता रहेगा कि ये "शुभ मिलन" अब पुनः कब बनेगा सुधा देवरानी*