नारी - अबला नहीं
आभूषण रूपी बेड़ियाँ पहनकर...
अपमान, प्रताड़ना का दण्ड,
सहना नियति मान लिया...
अबला बनकर निर्भर रहकर,
जीना है यह जान लिया....
सदियों से हो रहा ये शोषण,
अब विनाश तक पहुँच गया ।
"नर-पिशाच" का फैला तोरण,
पूरे समाज तक पहुँच गया ।।
अब वक्त आ गया वर्चस्व करने का,
अन्धविश्वाश ,रूढिवादिता ,कुप्रथाओं,
से हो रहे विनाश को हरने का ।
हाँ ! वक्त आ गया अब पुन:
शक्ति रूप धारण करने का ।
त्याग दो ये बेड़ियाँ तुम,
लौहतन अपना बना दो !
थरथराये अब ये दानव...
शक्तियां अपनी जगा दो !
लो हिसाब हर शोषण का
उखाड़ फेंको अब ये तोरण !
याद आ जाए सभी को,
रानी लक्ष्मीबाई का युद्ध-भीषण ।
उठो नारी ! आत्मजाग्रति लाकर,
आत्मशक्तियाँ तुम बढ़ाओ !
आत्मरक्षक स्वयं बनकर
निर्भय निज जीवन बनाओ !
शक्ति अपनी तुम जगाओ !
लौहतन अपना बना दो !
थरथराये अब ये दानव...
शक्तियां अपनी जगा दो !
लो हिसाब हर शोषण का
उखाड़ फेंको अब ये तोरण !
याद आ जाए सभी को,
रानी लक्ष्मीबाई का युद्ध-भीषण ।
उठो नारी ! आत्मजाग्रति लाकर,
आत्मशक्तियाँ तुम बढ़ाओ !
आत्मरक्षक स्वयं बनकर
निर्भय निज जीवन बनाओ !
शक्ति अपनी तुम जगाओ !
. - सुधा देवरानी
टिप्पणियाँ
सादर आभार
बहुत सुंदर सकारात्मक संदेश देती
ऊर्जा से परिपूर्ण सृजन प्रिय सुधा जी।
सस्नेह।
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहद्विगुणित कर देती है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
ओज का आह्वान।