प्रभु फिर आइए
जग के पालनहार, दीन करते गुहार, लेके अब अवतार, प्रभु फिर आइए । दैत्य वृत्ति बढ़ रही, कुत्सा सर चढ़ रही, प्रीत का मधुर राग, जग को सुनाइए । भ्रष्ट बुद्धि हुई क्रुद्ध, धरा झेल रही युद्ध, सृष्टि के उद्धार हेतु, चक्र तो उठाइए । कर्म की प्रधानता का, धर्म की महानता का, सत्य पुण्य नीति ज्ञान, सब को बताइये । दुष्ट का संहार कर, तेज का विस्तार कर, धुंध के विनाश हेतु, मार्ग तो सुझाइए । बने पुनः विश्व शान्ति, मिटे सभी मन भ्रांति, भक्त हो सुखी सदैव, कृपा बरसाइए । आओ न कृपानिधान, बाँसुरी की छेड़ तान, विधि के विधान अब, पुनः समझाइए । धर्म की कराने जय, मेंटने संताप भय, दिव्य रुप धार कर, प्रभु फिर आइए । पढ़िये एक और घनाक्षरी छंद.. राम एक संविधान