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मम्मा ! मैंने अपने लिए विश नहीं माँगी

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  "बिन्नी चल जल्दी से नहा-धोकर मंदिर हो आ ! आज से तेरी बोर्ड परीक्षा शुरू हो रही है न, तो जाकर भोलेनाथ जी से प्रार्थना करना परीक्षा में सबसे अव्वल आने के लिए ! ठीक है ! चल जल्दी कर" ! "माँ ! मंदिर - वंदिर रहने दो न ! इत्ता मैं रिविजन कर लूँगी ! प्लीज मम्मा ! और वैसे भी मुझे सबसे अव्वल नहीं आना,  बस अच्छी पर्सेन्टिज चाहिए" । "अरे ! दिमाग तो ठीक है तेरा ! बोर्ड परीक्षा की शुरुआत में भला कौन बच्चा मंदिर में प्रभु दर्शन किए बगैर पेपर देने जाता है ? बहुत हो गया तेरा रिविजन वगैरा ! साल भर से कहाँ थी जो अब पढ़ने चली है ?  चल अब बिना बहाने के जल्दी कर और जा मंदिर  !  फिर कर लेना प्रार्थना भगवान जी से अच्छी परसेंटेज के लिए । सबसे अव्वल नहीं आना ! हुँह"....। "ओह्हो मम्मा ! आप भी न" ! कहकर विन्नी ने किताबें छोड़ी और घुस गयी बाथरूम में ।  स्नान आदि के बाद फटाफट मंदिर गयी और जल्दी आकर पुस्तक उठायी ही थी कि माँ ने पूछा इतनी जल्दी आ गयी ?  "अरे ! प्रार्थना भी की या बस ऐसे ही " ? "हाँ मम्मा ! विश की मैंने " कहते हुए विन्नी ने अपने दोनों हाथों क

बेटियाँ खपती जाती हैं दो दो घरों की फिकर में ।

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  कावेरी ने जब सुना कि बेटी इस बार होली पे आ रही है तो उसकी खुशियों की सीमा ही न थी । बड़ी उत्सुकता से लग गयी उसकी पसन्द के पकवान बनाने में ।  अड़ोस-पड़ोस की सखियों को बुलाकर उनके साथ मिलकऱ, ढ़ेर सारी गुजिया शक्करपारे और मठरियाँ बनाई । शुद्ध देशी घी में उन्हें तलते हुए वह बेटी कान्ति की बचपन के किस्से सुनाती जा रही थी सबको । पिछले एक साल से कान्ति मायके ना आ सकी तो माँ का मन तड़प रहा था बेटी से मिलने के लिए ।  कावेरी की पड़ोसी सखियाँ भी जानती थी कि कान्ति की सास जबसे बीमार पड़ी, तभी से वह मायके नहीं आ पायी । वरना शादी के बाद से ही कान्ति हर तीज त्यौहार पर मायके जरूर आती थी और बड़ी बेफिक्री से   कुछ दिन रहकर वापस ससुराल जाती। वह हमेशा अपनी सासूमाँ की तारीफ करते न थकती । कावेरी भी खुश होती कि समधन अच्छी है इसीलिए उसकी इकलौती बेटी ससुराल में सुख से है । परंतु समधन की बीमारी के कारण जब बेटी का आना जाना कम हुआ तो उसे वह मुसीबत लगने लगी। मन ही मन वह सोचती की बुढ़िया मर ही जाय तो बेटी को उसकी तिमारदारी से छुटकारा मिले । कान्ति आई तो घर में रौनक आ गयी । माँ की आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े । वह उसे बा

उत्तराखंड में मधुमास - दोहे

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  नवपल्लव से तरु सजे, झड़़े पुराने पात । महकी मधुर बयार है, सुरभित हुआ प्रभात ।। पुष्पों की मुस्कान से, महक रही भिनसार । कली-कली पे डोलके, भ्रमर करे गुंजार ।। भौरे गुनगुन गा रहे , स्नेह भरे अब गीत । प्रकृति हमें समझा रही ,परिवर्तन की रीत ।। आम्र बौंर पिक झूमता , कोकिल कूके डाल ।  बहती बासंती हवा   टेसू झरते लाल ।।  गेहूँ बाली हिल रही, पुरवाई के संग । पीली सरसों खिल रही, चहुँदिशि बिखरे रंग ।। पिघली बर्फ़ पहाड़ की, खिलने लगे बुरांस । सिंदूरी सेमल खिले, फ्यूंली फूली खास ।। श्वेत पुष्प से लद रहे, हैं मेहल के पेड़ । पंछी घर लौटन लगे, शहर प्रवास नबेड़ ।। बन-बन हैं मन मोहते, महके जब ग्वीराल । थड़िया-चौंफला गीत सु, गूँज उठी चौपाल ।। बेडू तिमला फल पके, पके हिंसर किनगोड़ । काफल, मेलू भी पके,   लगती सबमें होड़ ।। हरियाली चौखट लगी, सजे फूल दहलीज । फूलदेइ त्यौहार में, हर मन हुआ बहीज ।। जीवन मधुमय हो गया , मन में है उल्लास । प्रकृति खुशी से झूमती,आया जब मधुमास ।। भिनसार=सुबह नबेड़=निपटाकर) बहीज=आनंदित) इसके अलावा उत्तराखंड के पर्व , लोकगीत-नृत्य और फल एवं फूलों के वृक्ष आदि का रचना में जिक्र जिनका है उनके व

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