नयी सोच【2】
डब्बू-- दादू ! आज मेरे फ्रेंड्स डिनर पे बाहर जा रहे हैं, मैं भी जाऊँ उनके साथ ?...
प्लीज दादू ! हाँ कह दो न।
दादाजी--अरे नहीं बेटा ! तू अपने दोस्तों के साथ कैसे डिनर करेगा ? आजकल ज्यादातर लड़के नॉनवेज खाते हैं डिनर में, फिर एक ही टेबल पर ! छिः छी...!
अच्छा बता क्या खाना है तुझे ?
अभी मँगवाता हूँ , बोल !
डब्बू----- नहीं ना दादू! मुझे बाहर जाना है ।
दादाजी---- ओ के ! चल फिर तैयार हो जा ! अभी चलते हैं, आज मैं तुझे तेरी पसंद की हर चीज खिलाउंगा। चल चल ! जल्दी कर!
डब्बू----- ओह दादू! नहीं जाना मुझे आपके साथ (गुस्से से खीझते हुए) मुझे समझ नहीं आता नॉनवेज से आपको दिक्कत क्या है ? हाँ खाते हैं सब लोग नॉनवेज ! खाने की चीज है तो खायेंगे ही न, और हम भी तो खाते हैं न अंडे!
दादाजी--- (सख्त लहजे में) अंडे नॉनवेज में नहीं आते डब्बू ! मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था।
डब्बू -- ये सब कहने की बाते हैं दादू ! अंडे से ही तो चूजा बनता है न...अंडा भ्रूण है दादू ! ... और छोड़िये ये सब । हमने खाया न, तो क्या बिगड़ा हमारा ? हम नहीं खाते तो कोई और खाता, ऐसे ही तो है नॉनवेज भी।
दादाजी---- ऐसे ही नहीं है नॉनवेज ! जानते हो न माँसाहार करना पाप है।
तुम्हारी मति भ्रष्ट हो रही है डब्बू !
पेट भरने के लिए हमारे पास अन्न है फिर हम सिर्फ़ जीभ के चटोरेपन के कारण माँसाहार करके पाप के भागी क्यों बने ?...
डब्बू--- इसमें पाप कैसा दादू ? एक हमारे ना खाने से उस चिकन या मटन में वापस जान नहीं आ जानी । अरे हम नहीं खायेंगे कोई और खायेगा।
दादू वो तो पाले ही खाने के लिए हैं । और ना भी खायें कोई तो भी क्या? कौन सा हमेशा जीवित रहने वाले हैं वो ?
दादाजी-- अरे ! हम वेजिटेरियन हैं हमारे लिए मांसाहार पाप है । जीवहत्या पाप है ।। बस ! और बहस नहीं !
डब्बू-- मैं भी कहाँ माँसाहार करना चाहता हूँ दादू ! पर उनके साथ एक टेबल पर खाने में मुझे कोई घृणा या पाप जैसी बात नहीं लगती।
दादू ! हम वेजिटेरियन क्या कोई हत्या या पाप नहीं करते ?
आप ही कहते हैं न फूल मत तोड़ो ! पेड़ मत काटो ! इनमें भी जान होती है। है न दादू ! पेड़ -पौधों में भी जान होती है न ।
फिर पेड़-पौधों से फल सब्जी लेते समय और फसलें काटकर अनाज लेते समय हम इनकी जान नहीं लेते ? पेड़-पौधों की जान लेना पाप क्यों नहीं है ?
दादू ! हम दूध पीते हैं न। एक छोटी सी बछिया को उसकी माँ के थन से जबरन अलग कर उसे रूखा-सूखा घास खिलाते हैं और उसके हिस्से का दूध खुद पी जाते हैं, क्या ये गलत नहीं है दादू ? कोई पाप भी नहीं है ? हमें इन गलतियों का पाप क्यों नहीं लगता दादू?।
इनका पाप क्यों नहीं लगता दादू ?
अल्फाज दादाजी के जेहन में उतर गये।शब्द मौन और तर्क क्षीण हो गये।
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२८-१०-२०२१) को
'एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ'(चर्चा अंक-४२३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर आभार।
सस्नेह आभार।
क्षमा सहित सुधा जी🙏🏼
सस्नेह आभार।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
आज के ज़माने में हम अपने मूल्य दूसरों पर नहीं थोप सकते.
दादाजी अंडा खाते हुए भी खुद को शाकाहारी कहते हैं, इस पर हमारे जैसे शाकाहारी सवाल उठा सकते हैं.
रही डब्बू की बात तो साग-सब्ज़ी और दूध के सेवन को भी मांसाहार की श्रेणी रखने वाला तो कोई महा-मूर्ख ही हो सकता है.
सही कहा सर! नहीं थोपने चाहिए अपने मूल्य दूसरों पर....लेकिन मैं ऐसे बहुत लोगों को जानती हूँ जो इस तरह सोचते हैं अंडे लेते हैं लेकिन मांसाहार नहीं। और अपने बच्चों से भी वही उम्मीद करते हैं...।और अब उनकी नयी पीढ़ी भी बड़ों के कहने पर मांसाहार तो नहीं लेती पर उन्हें इससे घृणा भी नहीं।
सर! डब्बू ने साग सब्जी और दूध को मांसाहार में नहीं रखा...जब दादाजी ने कहा जीवहत्या पाप है मांसाहार पाप है तब डब्बू ने कहा कि पेड़ -पौधों में भी जान होती है उनसे फल सब्जी लेना और गाय के बछड़े के हिस्से का दूध लेना गलत नहीं है क्या इससे पाप नहीं लगता।
ये बस नयी पीढ़ी की नयी सोच बताने की कोशिश मात्र है।
विमर्श हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका।