पिज्जा का भोग
"अभी कोई नहीं खायेगा, पहले मुझे भगवान जी को़ भोग लगाने दो" विक्की डाइनिंग टेबल में रखे पिज्जा से एक पीस उठाते हुए बोला, तो माँ उसे समझाते हुए बोली ;...
"बेटा! ये प्रसाद नहीं जो भोग लगाएं, और किस खुशी में भोग लगाना है तुम्हें....? बता दिया होता हम थोड़े पेड़े ले आते। पर तुमने तो पिज्जा मंगवाया था न"।
"हाँ मम्मी ! पिज्जा ही चाहिए था भगवान जी के लिए। उन्होंने मेरी इतनी बड़ी विश पूरी की, तो पिज्जा तो बनता है न, उनके लिए"....।
"अरे ! पिज्जा का भोग कौन लगाता है भला " ?...
"वही तो मम्मी ! कोई नहीं लगाता पिज्जा का भोग..... बेचारे भगवान जी भी तो हमेशा से पेड़े और मिठाई खा- खा के बोर हो गये होंगे , हैं न.......।
और जब मुझे सेलिब्रेशन के लिए पिज्जा चाहिए तो भगवान जी को वही पुराने पेड़े क्यों "?...
"पर बेटा पिज्जा का भोग नहीं लगाते !
वैसे तुम्हारी कौन सी विश पूरी हुई"? माँ ने कोतुहलवश पूछा ;....
"मम्मी ! वो हमारी इंग्लिश टीचर हैं न ...वो चेंज हो गयी हैं, अब वे हमें इंग्लिश नहीं पढायेंगी, इंग्लिश तो क्या वे हमें अब कुछ भी नहीं पढ़ायेंगी....हमारी क्लास में आयेंगी ही नहीं....ये....ए....( खुशी से शोर मचाते हुए उछलता है)।
तो ये विश थी तुम्हारी....? पर क्यों ? उसकी बाँह पकड़कर रोकते हुये मम्मी ने पूछा,
रहने दीजिए मम्मी!आप नहीं समझेंगे।
बाँह छुड़ाते हुए विक्की बोला और पिज्जा लेकर घर में बने मंदिर में घुस गया।
चित्र साभार,pixabay से..
टिप्पणियाँ
और जब मुझे सेलिब्रेशन के लिए
वाकई समय बहुत गतिमान है, वक्त हर विचार को अपनी कसौटी पर जरूर तोलता है।और हाँ जो वस्तु बच्चों को प्रिय हैं,उसका भोग यदि वे लगायें, तो बालहठ हेतु स्वीकार्य।
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
सादर आभार।
अब समय ने करवट बदली है तो भगवान की पसंद भी तो बदली होगी,"बहुत हुआ लाडू-पेड़े अब पिज़्ज़ा भोग लगाना है
जो खुद मन को भाये वही प्रभु को खिलाना है "
मन को छूती बेहद प्यारी लघु कथा,सादर नमन आपको सुधा जी
सादर
बच्चों का क्या सखी!आप तो जानती ही हैं , जितनी जल्दी मानते हैं उतनी ही जल्दी रूठते भी हैं...ऐसे ही टीचर से भी। जरा सा डाँट डपट दे टीचर तो गन्दी वाली टीचर हो जाती है...। फिर बस...।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जब बड़े ही नहीं समझते कि भगवान का दिया भगवान को ही प्रसाद रूपी रिश्वत...फिर बच्चे तो बच्चे हैं...।हाँ ऐसा कुछ दर्शाया होता कहानी में तो वाकई ये और बेहतर होती..।तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
हाँ सिर्फ पवित्रता का ध्यान ज़रूर रखना बताया जा सकता है... बल मन सीख भी जाता है ...
अच्छी प्रेरक कहानी ...