सीख दुनियादारी की


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छि! क्या दुनिया है ?...कैसी दुनिया है?...बड़ी अजीब दुनिया है....ऐसी ही है ये दुनियादारी...!!!

लोगों से बार-बार ऐसे शब्द सुन तंग आ गयी दुनिया की रूह!

फिर लिया फैसला और चली  हर एक नवजात शिशु को दुनिया में आते ही दुनिया का हाल बताने.......   ताकि उसे न लगे अजीब ये दुनिया....  न हो दुनिया से शिकायत...और न सुनाये वह भी दुनिया को दुनियादारी के ताने...... ।

वह मिली हर उस नवजातक से....

जो दुनिया और दुनियादारी से बेखबर आँखे मूँदे मन्द-मन्द मुस्करा रहा....बन्द मुट्ठी में लायी अपनी तकदीर को होले होले से घुमा रहा..... नहीं जानता वो दुनिया के दुख-सुख, रिश्ते -नाते.....  और नहीं पता उसे अच्छाई क्या और बुराई क्या....अभी तो मानो विधाता से ही चलती है उसकी गुप्तगू .......  विधाता के सिवा उसके लिए कहीं भी कुछ है ही क्या....

उसके पास जाकर धीरे से बोली ;.....                               "हे नन्हें नाजुक प्यारे से नवजातक ! मुझे सुनो! बड़े ध्यान से सुनो !                                                       

जिस दुनिया में आज तुम्हारा अवतरण हुआ है न,      

 मैं रूह हूँ उसी दुनिया की । और अपनी यानी दुनिया की कड़वी परन्तु सच्ची सच्चाई तुम्हें बताने आई हूँ, ताकि तुम भी औरों की तरह ये न कहो कि "छि ! ये क्या दुनियादारी है....कैसी दुनिया है ये" ....

हाँ !तुम अभी जान लो इस दुनियादारी को....

इसकी कठोरता से कुछ कठोरता लेकर अपने नन्हें कोमल मन के बाहर एक आवरण बनाना शुरू करो आज से नहीं अभी से ही....

हाँ ! एक मजबूत कठोर आवरण !...  

जिसके भीतर सम्भाल सको तुम इस कोमल मन की संवेदनाओं को ....छिपाकर रखना उन्हें दुनियादारी की नजर से,

क्योंकि यहाँ कोमल नाजुक पंखुड़ियों को रौंदना बहुतों का शौक है।

हे नाजुक नवजातक ! अभी तुम्हें अपने जन्मदाता का स्नेह और सानिध्य भरपूर मिलेगा.....।    

तुम उनके कन्धों से जब उतरो तो झट से सीख लेना खड़ा होना अपने पैरों पर पूरी मजबूती से।

और जैसे ही ये कन्धे झुकने लगें, उठा लेना तुम भी इन्हें अपने कन्धों पर । कर लेना हिसाब बराबर......

 क्योंकि ऋणी रहे इनके और न सम्भाल पाये स्वयं को तो स्नेह की जगह एहसान देख आहत होगा तुम्हारा ये नाजुक मन कितने ही कठोर आवरण के भीतर भी।

हे नवजातक ! अगर तुम कन्या हो तो और भी सम्भलकर रहना होगा ।

जन्मदाता के संरक्षण में रहकर जल्द ही तन मन से मजबूत बनना होगा तुम्हें।  

नहीं तो बड़ी होकर कोई वस्तु या जागीर सी बनकर रह जाओगी पिता और पति के अधिकार क्षेत्र की ।  

तुम पति में पिता सा स्नेह न पाकर जब  साधिकार वापस पितृगृह लौटोगी तो आहत होगा तुम्हारा नाजुक मन ये जानकर कि अब तुम पिता की लाडली नहीं उन पर बोझ हो।

इसीलिए आज के स्नेह और सानिध्य से अपने मन को इतना मजबूत बनाना कि कल औरों को अपना स्नेह और सानिध्य दे सको ।

 स्नेह की आकांक्षी न रहकर सच्ची सहचरी बन जीवनसफर में कन्धे से कन्धा मिला गृहस्थी की गाड़ी को पूरी सक्षमता से खींच सको।

हे नवजातक ! दुनिया अच्छी है या बुरी है जैसी भी है तुम्हारी है तुम सब ही निर्मित हो इसके।

ये बहुत अच्छी थी जब तुम अच्छे थे और अब भी अच्छी होगी जब तुम अच्छाई की नींव पुनः रखोगे .....।

अपनी, अपनों की,  हमारी और हम सबकी खुशियों के खातिर दुनिया को पहले सा अच्छा बनाने की दिशा में प्रयास करना मेरे नन्हे नवजातक !

क्योंकि तुम सही दिशा अपनाओगे तो दुनिया की दशा स्वतः बदल जायेगी।

    

           चित्र साभार pixabay.com से

टिप्पणियाँ

संदेशप्रद अभिव्यक्ति. सचमुच इस दुनिया की रूह बहुत दुखी रहती होगी. रूह की बात समझ हर बच्चा दुनियादारी सीख ले, अच्छी वाली दुनियादारी.
आलोक सिन्हा ने कहा…
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय लेख ।
Sudha Devrani ने कहा…
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार जेन्नी शबनम जी!
Sudha Devrani ने कहा…
सादर आभार एवं धन्यवाद, आ.आलोक जी!
बहुत सुन्दर लेख ।
Jyoti Dehliwal ने कहा…
तुम पति में पिता सा स्नेह न पाकर जब साधिकार वापस पितृगृह लौटोगी तो आहत होगा तुम्हारा नाजुक मन ये जानकर कि अब तुम पिता की लाडली नहीं उन पर बोझ हो।
बहुत ही कड़वी सच्चाई है, सुधा दी।
एक नव और खूबसूरत मनोभावों की सटीक और सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक शुभकामनाएं सुधा जी ।नमन आपको ।
Sudha Devrani ने कहा…
सादर आभार एवं धन्यवाद उर्मिला जी!
Sudha Devrani ने कहा…
सादर आभार जवन धन्यवाद ज्योति जी!
Sudha Devrani ने कहा…
सादर आभार एवं धन्यवाद जिज्ञासा जी!
बहुत सुन्दर सृजन।
Sudha Devrani ने कहा…
हृदयतल से धन्यवाद आ.जोशी जी!
Sudha Devrani ने कहा…
सादर आभार एवं धन्यवाद आ.सर!
Kamini Sinha ने कहा…
सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (8 -6-21) को " "सवाल आक्सीजन का है ?"(चर्चा अंक 4090) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
प्रभावशाली लेखन - - शुभ कामनाओं सह।
Sudha Devrani ने कहा…
तहेदिल से धन्यवाद कामिनी जी!मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
सादर आभार।
अनीता सैनी ने कहा…
बहुत ही सुंदर लिखा आदरणीय सुधा दी।
सादर
PRAKRITI DARSHAN ने कहा…
्गहरी अभिव्यक्ति...।
क्या बात है ! बहुत सुंदर
Sudha Devrani ने कहा…
सहृदय धन्यवाद प्रिय अनीता जी!
Sudha Devrani ने कहा…
हार्दिक धन्यवाद आ. संदीप जी!
Sudha Devrani ने कहा…
हार्दिक धन्यवाद आ. गगन शर्मा जी!
मन की वीणा ने कहा…
वाह अद्भुत! प्रतीकात्मक भाषा में आपने नवांकुरों को सुंदर सीख दी है !
सारगर्भित सार्थक प्रयास।
Meena Bhardwaj ने कहा…
बहुत सुन्दर सृजन सुधा जी ।
Sudha Devrani ने कहा…
सहृदय धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी!
Sudha Devrani ने कहा…
सहृदय धन्यवाद एवं आभार मीना जी !
Meena sharma ने कहा…
इसकी कठोरता से कुछ कठोरता लेकर अपने नन्हें कोमल मन के बाहर एक आवरण बनाना शुरू करो आज से नहीं अभी से ही....
नवजात शिशु तो कोरे कागज सा होता है उसके कोरे स्वच्छ मन पर वही चित्र अंकित होते जाते हैं जो ये दुनिया उस पर बनाती है। आपने इस बात को बड़ी गहराई से समझाया है।
Sudha Devrani ने कहा…
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी!प्रोत्साहन हेतु।
उम्मीद है समझ विकसित हो गयी होगी नवजात की

उम्दा सृजन
Sudha Devrani ने कहा…
सादर आभार एवं धन्यवाद आ. विभा जी!

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