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इधर कुआँ तो उधर खायी है.....

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  अपने देश में तो आजकल चुनाव की लहर सी आयी है। पर ये क्या ! मतादाताओं के चेहरे पर तो गहरी उदासीनता ही छायी है । करें भी क्या, हमेशा से मतदान के बाद जनता देश की बहुत पछतायी है । इस बार जायेंं तो जायें भी कहाँँ इधर कुआँ तो उधर खायी है । चन्द सफलताओं के बाद ही भा.ज.पा में तो जाने कैसी अकड़ सी आयी है । अपने "पी.एम" जी तो बस बाहर ही छपलाये देश को भीतर से तो दीमक खायी है । बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी और मंहगाई में रत्ती भर भी कमी नहीं आयी है । शिशिर  की ठण्ड से ठिठुरकर मरते गरीब जाने कहाँ सरकार ने कम्बल बँटवायी हैं ? इस बार जायें तो जायें भी कहाँ इधर कुआँँ तो उधर खायी है । कॉंग्रेस की जी-तोड़, कमर-कस मेहनत शायद रंग ले भी आयेगी । मुफ्त ये,मुफ्त वो, मुफ्त सो,का लालच देकर शायद बहुमत पा भी जायेगी । जरूरत, लालच,या मजबूरी (जो भी कहो) बेचकर अपने बेसकीमती मत को फिर नये नेता के बचकानेपन पर सारी जनता सिर धुन-धुनकर पछतायेगी । रुको ! देखो !समझो ! परखो ! फिर सही चुनो ! लिखने में मेरी तो लेखनी भी कसमसाई है । हमेशा से यहाँ यूँ ही ठगी गय

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