गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

लघुकथा - विडम्बना



Short story





 "माँ ! क्या आप पापा की ऐसी हरकत के बाद भी उन्हें उतना ही मानती हो " ?  

अपने और माँ के शरीर में जगह-जगह चोट के निशान और सूजन दिखाते हुए बेटे ने पूछा ।

आँसुओं का सैलाब लिए माँ बेटे के उन जख्मों को सहलाती रही जो पापा की मार से उसे को बचाते समय लगे, परन्तु कुछ कह ना सकी तो बेटा बोला, "माँ ! मैं अब बड़ा हो गया हूँ, समझ और सहनशक्ति जबाब दे रही है, आपके पति-परमेश्वर की इन हरकतों के विरोध में मेरी जुबान या हाथ चलें, इससे पहले मैं घर छोड़कर कहीं दूर जा रहा हूँ , क्योंकि मैं भी आपकी नफरत बरदाश्त नहीं कर पाउँगा" । 




  पढिए एक और लघुकथा 




गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

तेरी रहमत पे भरोसा है मुझे


Nayisoch

धू - धू कर धधकती आग और लौंकते धुएं को देखा तो उस नन्हीं चिड़िया का ख्याल आया जिसने उस काँस की घास से भरे बड़े से प्लॉट के बीच खड़े उस बबूल के पेड़ पर अपना नीड़ बनाया है ।

कुछ दिनों से छत पर धूप सेंकते वक्त उसे देखती रही तो एक अलग ही लगाव हो गया उससे ।

धधकती आग देखकर व्याकुल मन मे तुरंत उसी चिड़िया का ख्याल आया तो मन ही मन बड़बड़ाई, "अरे ! उसके बच्चे तो अभी बहुत छोटे हैं , उड़ नहीं सकते । अजीब सी हलचल मच गई मन में । झट से सीढ़ियाँ चढ़ते हुए छत में गई तो देखा आग सूखी काँस पर बड़ी तेजी आगे बढ़ रही है ।

क्या करूँ ! कैसे बचाऊँ इसके नन्हें चूजों को ? मन में बेचैनी बढ़ी तो सोसायटी इंचार्ज को फोन किया । वे बड़े आश्वस्त होकर बोले, "आग से डरने वाली बात ही नहीं है । प्लॉट के ऑनर ने फायर बिग्रेड की सुविधा कर रखी है कोई अनहोनी पहले तो होगी नहीं अगर लगा तो सामने ही सब समाधान है आप निश्चिंत रहिए" ।

क्या कहती कैसे निश्चिंत रहूँ ? बेचारी चिड़िया का घोसला और उसके नन्हें बच्चे ..  ?  खैर... कौन समझता इन बातों को...!

अब कोई सहारा न पाकर मैं बस उस बेबस चिड़िया को देखने लगी बेबसी से । हाँ बेबसी इसलिए कि हमारे अपार्टमेंट से वहाँ जाने का नजदीक से फिलहाल कोई रास्ता नहीं है।

मैंने देखा बहुत सारी चिड़ियाएं कलरव करती हुई आई , उस बबूल पर बैठी और फिर वैसे ही कलरव करते हुए उड़ गयी । मुझे लगा शायद सबके साथ वह चिड़िया भी उड़ गई होगी ।

ध्यान से देखा तो नहीं उड़ी वह !  कैसे उड़ती ? माँ जो है । वह तो उसी बबूल की हर टहनी में बेचैनी से इधर उधर फुदक-फुदक कूदती- फाँदती फिर अपने नन्हें बच्चों के पास आती, जैसे कोई रास्ता ढूँढ़ रही हो इस मुसीबत से निकलने का ।

आग बासंती बयार का साथ पाकर और तेज गति से सूखे काँस पर बढ़ती जा रही थी । और आग की धधकार के साथ ही मेरी धड़कन भी उसी गति से तेज और तेज...

एक समय ऐसा आया कि आग बबूल के बहुत करीब और चारों तरफ फैल गयी , चिड़िया अब शांत अपने बच्चों के ऊपर बैठ गई घोंसले में । जैसे उसकी सारी बेचैनी खत्म हो गई हो ।

मेरी धड़कनों का शोर भी तब थम सा गया जब धुएं में बबूल का पेड़ दिखना ही बंद हो गया। मैंने आँखें भींच ली तो अंदर का दर्द रिसने लगा आँसुओं के साथ ।  

कहीं आसपास से भजन की आवाज आ रही थी ।


तेरी रहमत पे भरोसा है मुझे,

काज मेरे बिगड़े सँवर जायेंगे ।

जब कोई मुश्किल होगी सामने,

पार मुझे सतगुरू जी लगायेंगे ।

तेरी रहमत पे भरोसा.....


लगा जैसे वही चिड़िया अरदास कर रही है ।  हाथ जुड़ गये और मन उस असीम की चौखट पर गिड़गिड़ाने लगा ।

कुछ ही देर में लपटों की धू - धू शांत होती सी महसूस हुई । भयभीत मन , बड़ी मुश्किल से आँखें खोली तो दंग रह गयी ! बबूल के पेड़ पर चिड़िया फिर टहनी टहनी फुदक रही थी और उसके बच्चे नीड़ में चूँ चूँ कर चोंच खोले कलरव मचा रहे थे। एक बार फिर आँख बंद कर इस चमत्कार के लिए उस असीम का धन्यवाद किया।

हुआ ये कि जहाँ तक बबूल की छाया रही , वहाँ तक काँस की घास सूखी नहीं थी । काँस हरी होने से आग आगे नहीं बढ़ी और बबूल का पेड़ और चिड़िया का घोंसला दोनों सुरक्षित रह गये । पर पहले ऐसी कोई सम्भावना भी मन में नहीं आई तो उस वक्त ये सिर्फ चमत्कार लग रहा था ।

अब सामने चिड़िया को उसके परिवार सहित सकुशल देखकर मन आह्लादित है।




पढ़िए एक और कहानी-

जो घर देखा नहीं सो अच्छाl




सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

राम एक संविधान




Ram mandir ayodhya

 





मनहरण घनाक्षरी छंद


गूँज उठी जयकार,

तोरण से सजे द्वार,

पाँच शतक के बाद,

शुभ दिन आये हैं !


कौशल्या दुलारे राम,

दशरथ प्यारे राम,

पधारे अवध धाम,                     

मंदिर बनाये हैं ।


सज्ज हुआ सिंहद्वार,

सज्ज राम दरबार,

पंच मंडपों के संग,

देवता दर्शाए हैं ।


प्रिय शिष्य हनुमान,

करेंगे सभी के त्राण,

राम राजकाज हेतु,

गदा जो उठाये हैं ।


सिया राम परिवार,

सुखप्रद घरबार,

नयनाभिराम अति,

आसन सजाये हैं ।


राम राज अभिषेक,

प्राण-प्रतिष्ठा को देख,

शिशिर में भी भक्तों के,

जोश गरमाये हैं ।


राम आरती अजान ,

राम एक संविधान,

भारती के प्राण राम,

भक्त मन भाये है ।


इष्ट में विशिष्ट राम,

शिष्ट में प्रकृष्ट राम,

हर्ष के विमर्श बन,

विश्व में समाये हैं ।



पढ़िए श्रीगणेश जी स्तुति

गणपति वंदना










शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

पा प्रियतम से प्रेम का वर्षण

Lovesong



शिशिर शरद से गुजर धरा का ,

व्यथित मलिन सा मुखड़ा ।

धूल धूसरित वृक्ष केश सब

बयां कर रहे दुखड़ा ।


पीत पर्ण से जीर्ण वसन लख 

व्याकुल नभ घबराया ।

अंजुरि भर-भर स्नेह बिंदु फिर

प्रेम से यूँ छलकाया ।


पा प्रियतम से प्रेम का वर्षण

हुआ गुलाबी मुखड़ा ।

हर्षित मन नव अंकुर फूटे

भूली पल में दुखड़ा ।


सीने से सट क्षितिज के पट

धरा गगन से बोली ।

"नैना तेरे दीप दिवाली,

वचन प्रेमरस होली ।


रंग दे मेरे मन का आँगन,

अनगिन कष्ट भुलाऊँ ।

युग युग तेरे प्रेम के खातिर

हद से गुजर मैं जाऊँ" ।


अधखुले नेत्र अति सुखातिरेक,

नभ मंद-मंद मुस्काया ।

हर्षित दो मन तब हुए एक,

बहुरंगी चाप बनाया ।


अद्भुत छवि लख मुदित सृष्टि,

अभिनंदित ऋतुपति आये ।

करने श्रृंगारित वसुधा को फिर,

स्वयं काम-रति धाये ।


बहुरंगी चाप = इंद्रधनुष

ऋतुपति = बसंत

लख = देखना


पढ़िए बसंत ऋतु के आगमन पर एक नवगीत

     बसंत तेरे आगमन पर



हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...