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जनवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

बेरोजगारी : "एक अभिशाप"

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   नवयुवा अपने देश के,     पढे-लिखे ,डिग्रीधारी     सक्षम,समृद्ध, सुशिक्षित      झेल रहे बेरोजगारी।                                                            कर्ज ले,प्राप्त की उच्च शिक्षा,                                अब सेठजी के ताने सुनते।                                परेशान ये मानसिक तनाव से,                                 आत्महत्या के रास्ते ढूँढते।      माँ,बहनों के दु:ख जो सह न सके,  वे अभागे गरीबी मिटाने के वास्ते, परचून की दुकान पर मिर्ची तोलते। तो कुछ सैल्समैन बन गली-गली डोलते।     ...

नारी - अबला नहीं

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आभूषण रूपी बेड़ियाँ पहनकर... अपमान, प्रताड़ना का दण्ड, सहना नियति मान लिया... अबला बनकर निर्भर रहकर, जीना है यह जान लिया.... सदियों से हो रहा ये शोषण, अब विनाश तक पहुँच गया । "नर-पिशाच" का फैला तोरण, पूरे समाज तक पहुँच गया ।। अब वक्त आ गया वर्चस्व करने का, अन्धविश्वाश ,रूढिवादिता ,कुप्रथाओं, से हो रहे विनाश को हरने का । हाँ ! वक्त आ गया अब पुन:  शक्ति रूप धारण करने का । त्याग दो ये बेड़ियाँ तुम, लौहतन अपना बना दो ! थरथराये अब ये दानव... शक्तियां अपनी जगा दो ! लो हिसाब हर शोषण का उखाड़ फेंको अब ये तोरण ! याद आ जाए सभी को, रानी लक्ष्मीबाई का युद्ध-भीषण । उठो नारी ! आत्मजाग्रति लाकर, आत्मशक्तियाँ तुम बढ़ाओ ! आत्मरक्षक  स्वयं बनकर  निर्भय  निज जीवन बनाओ ! शक्ति अपनी तुम जगाओ !          .                   - सुधा देवरानी

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