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आई है बरसात (रोला छंद)

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अनुभूति पत्रिका में प्रकाशित रोला छंद आया सावन मास,  झमाझम बरखा आई। रिमझिम पड़े फुहार, चली शीतल पुरवाई। भीनी सौंधी गंध, सनी माटी से आती। गिरती तुहिन फुहार, सभी के मन को भाती ।। गरजे नभ में मेघ, चमाचम बिजली चमके । झर- झर झरती बूँद, पात मुक्तामणि दमके । आई है बरसात,  घिरे हैं बादल काले । बरस रहे दिन रात, भरें हैं सब नद नाले ।। रिमझिम पड़े फुहार, हवा चलती मतवाली । खिलने लगते फूल, महकती डाली डाली । आई है बरसात, घुमड़कर बादल आते । गिरि कानन में घूम, घूमकर जल बरसाते ।। बारिश की बौछार , सुहानी सबको लगती । रिमझिम पड़े फुहार, उमस से राहत मिलती । बहती मंद बयार , हुई खुश धरती रानी । सजी धजी है आज, पहनकर चूनर धानी ।। हार्दिक अभिनंदन आपका🙏 पढ़िए बरसात पर एक और रचना निम्न लिंक पर ●  रिमझिम रिमझिम बरखा आई

माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी

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छ्वाया फूटे सौण - भादों , धार नदियों संग आई  माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी बोली मुझसे खुद लगीं बा  हो सके तो गाँव आ जा बीसीयों बीते मिले आ अब तो ये सूरत दिखा जा मटण्या पाणी, सौंधी खुशबू समलौण्या दुलार लायी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी वो पहाड़ी धार वाली बोली द्या अब ना गिरेगी बाट चौड़े पक्के वाले  माट में अब ना सनेगी गाड़ी मोटर पों-पों करती अब तो हर इक ख्वाल आयी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी म्याल ना लिपने पड़ेंगे चमचमाती फर्श बोली कूड़ी में लेंटर पड़े अब हुई चकमक रौली-खौली कम हुए हैं गोर-बाछी कार जब से ढ्यार आयी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी ना पुरानी बात है अब  सार्यूं मा कुर्री की झाड़ी पुँगड़ी-पटली बाँझ हैं सब सूनी-सूनी हैं तिबारी पर घुघूती जब बासूति  तब पुरानी याद आयी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी । हाँ पुराने दिन यहाँ  खेतों में फसलें हरहराती कोदो लौ ती बेटी ब्वारी  झंगोरे की बात आती स्यार में सट्टी थे पकते  उरख्यली चूड़ा कुटायी माटी मेरे गाँव की मुझसे मिली रैबार लायी दे दनादन फसल पकती  बाद...

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