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दिसंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

इधर कुआँ तो उधर खायी है.....

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  अपने देश में तो आजकल चुनाव की लहर सी आयी है। पर ये क्या ! मतादाताओं के चेहरे पर तो गहरी उदासीनता ही छायी है । करें भी क्या, हमेशा से मतदान के बाद जनता देश की बहुत पछतायी है । इस बार जायेंं तो जायें भी कहाँँ इधर कुआँ तो उधर खायी है । चन्द सफलताओं के बाद ही भा.ज.पा में तो जाने कैसी अकड़ सी आयी है । अपने "पी.एम" जी तो बस बाहर ही छपलाये देश को भीतर से तो दीमक खायी है । बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी और मंहगाई में रत्ती भर भी कमी नहीं आयी है । शिशिर  की ठण्ड से ठिठुरकर मरते गरीब जाने कहाँ सरकार ने कम्बल बँटवायी हैं ? इस बार जायें तो जायें भी कहाँ इधर कुआँँ तो उधर खायी है । कॉंग्रेस की जी-तोड़, कमर-कस मेहनत शायद रंग ले भी आयेगी । मुफ्त ये,मुफ्त वो, मुफ्त सो,का लालच देकर शायद बहुमत पा भी जायेगी । जरूरत, लालच,या मजबूरी (जो भी कहो) बेचकर अपने बेसकीमती मत को फिर नये नेता के बचकानेपन पर सारी जनता सिर धुन-धुनकर पछतायेगी । रुको ! देखो !समझो ! परखो ! फिर सही चुनो ! लिखने में मेरी तो लेखनी भी कसमसाई है । हमेशा से यहाँ यूँ ही ठगी गय...

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