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जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

असर

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माँजी खाना खा लीजिए न ! ऐसे खाने पर क्यों गुस्सा उतारना ? चलिए न माँजी ! फिर आपकी दवाओं का समय हो रहा है , तबियत बिगड़ जायेगी ! चलिए खाना खा लीजिए न ! कितनी देर से सीमा ऐसे ही अपनी सासू माँ को मना रही थी, पर सासू माँ आज  मुँह फुलाए बैठी थी , आखिर उनके लाडले पोते बंटी को उसके पापा से डाँट जो पड़ गयी थी । बंटी आजकल अपनी दादी के इसी प्यार का गलत फायदा उठा रहा था , कोई भी गलती करता और डाँट पड़े तो दादी से शिकायत ! वह जानता था कि दादी सबको डाँट-डपट कर उसे बचा लेंगी , नतीजतन वह बहुत ही लापरवाह होता जा रहा था । उसका सामान पूरे घर भर में बिखरा रहता । जूते - चप्पल भी वह कभी सही तरीके से सही जगह न रखता । उसका कमरा भी हमेशा अस्त-व्यस्त रहता, किताबें और कपड़े पूरे कमरे में तितर-बितर फैले रहते । सीमा (उसकी माँ) उसके कमरे में बिखरे सामानों को समेटते - समेटते थक जाती और जब भी कभी उसे इस बारे में डाँटती या कुछ भी कहती तो वह साथ-साथ जुबान लड़ाता । माँ को तो जैसे कुछ समझता ही नहीं था । तंग आकर सीमा ने आज उसके पापा से शिकायत कर दी । पापा की डाँट पड़ी तो घड़ियाली आँसू बहा आया दादी से लिपटकर । बस फिर दादी शुर...

वसुधा अम्बर एक हो गये

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दिग-दिग्गज हैं अलसाये से खग मृग भी सब सोये से हैं । थर थर थर है शिशिर काँपती, साग-पात सब रोये से हैं । लता वृक्ष सब मुरझाए से, पात बिछड़ने का झेलें गम । मारी-मारी फिरें तितलियाँ, फूलों का मकरंद गया जम । छुपम-छुपाई खेल रहे रवि, और पवन पुरजोर चल रही । दुबके सोये पता ना चलता, रात कटी कब भोर टल रही । दादुर मोर सभी चुप-चुप हैं, कोयल मैना कहीं खो गये । मौन मिलन आलिंगनबद्ध से वसुधा अम्बर एक हो गये । सकल सृष्टि स्तब्ध खड़ी सी, बाट जोहती ज्यों बसंत का । श्रृंगारित होगी दुल्हन सी, शुभागमन हो रति अनंग का ।

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