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जुलाई, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

बने पकौड़े गरम-गरम

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ख्यातिलब्ध पत्रिका  'अनुभूति'  के  'गरम पकौड़े'  विशेषाँक में मेरे गीत 'बने पकौड़े गरम-गरम' को सम्मिलित करने हेतु ' आदरणीया पूर्णिमा वर्मन जी ' का हार्दिक आभार । घुमड़-घुमड़ कर घिरी घटाएं बिजली चमकी चम चम चम   झम झम झम झम बरसी बूँदें बने पकौड़े गरम-गरम सनन सनन कर चली हवाएं,  सर सर सर सर डोले पात  भीगी माटी सौंधी महकी पुलकित हुआ अवनि का गात  राहत मिली निदाघ से अब तो हुआ सुहाना ये मौसम  झम झम झम झम बरसी बूँदें बने पकौड़े गरम-गरम अदरक वाली कड़क चाय की,  फरमाइश करते दादा । दादी बोली मेरी चाय में मीठा हो थोड़ा ज्यादा ! बच्चों को मीठे-मीठे  गुलगुले चाहिए नरम नरम झम झम झम झम बरसी बूँदें,  बने पकौड़े गरम-गरम खट्टी मीठी और चटपटी चटनी डाली थाली में  बच्चों को शरबत बाँटा और चाय बँटी फिर प्याली में  बारिश की बोछारों के संग  ओले बरसे ठम ठम ठम झम झम झम झम बरसी बूँदें  बने पकौड़े गरम-गरम पढ़िए बरसात और बारिश पर मेरी एक कविता ●  बरसी अब ऋतुओं की रानी

चींटी के पर निकलना

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  "ये क्या बात हुई बात हुई आंटी ! सफलता मुझे मिली और बधाइयाँ मम्मी को"  !?.. "हाँ बेटा ! तेरी मम्मी की वर्षों की तपस्या है, तो बधाई तो बनती ही हैं न उसको। और तुझे तो बधाई ही बधाई बेटा  ! खूब तरक्की करे ! हमेशा खुश रहे ! कहते हुए शीला ने रोहन के सिर पर प्यार से हाथ फेरा । "तपस्या ! थोड़ी सी मन्नतें ही तो की न मम्मी ने ? और जो मैं दिन-रात एक करके पढ़ा ? मैं मेहनत ना करता तो मम्मी की मन्नतों से ही थोड़े ना मेरा सिलेक्शन हो जाता आंटी" ! "हाँ बेटा ! मेहनत भी तभी तो की ना तूने, जब तेरी मम्मी ने तुझे जैसे- तैसे करके यहाँ तक पढ़ाया"।  "कौन नहीं पढ़ाता आंटी ? आप भी तो पढ़ा ही रहे हो न अपने बच्चों को"। "माफ करना बेटा ! गलती हो गई मुझसे । बधाई तेरी माँ को नहीं, बस तुझे ही बनती है ।  तेरी माँ ने तो किया ही क्या है , है न ! बेचारी खाँमखाँ मेहनत-मजदूरी करके हड्डी तोड़ती रही अपनी" । सरला ! अरी ओ सरला ! सोचा था तुझे कहूँगी कि परमात्मा की दया से बेटा कमाने वाला हो गया, अब तू इतना मत खपा कर, पर रोहन को सुनकर तो यही कहूँगी कि अभी कमर कस ले ताकि दूसरे बेटे म...

तपे दुपहरी ज्वाल

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  【1】 भीषण गर्मी से हुआ, जन-जीवन बेहाल । लू की लपटें चल रही, तपे दुपहरी ज्वाल । तपे दुपहरी ज्वाल, सभी बारिश को तरसें । बीत रहा आषाढ़, बूँद ना बादल बरसे । कहे सुधा सुन मीत, बने सब मानव धर्मी । आओ रोपें वृक्ष , मिटेगी भीषण गर्मी ।। 【2】 रातें काटे ना कटे,  अलसायी है भोर । आग उगलती दोपहर, त्राहि-त्राहि चहुँ ओर । त्राहि-त्राहि चहुँ ओर, वक्त ये कैसा आया । प्रकृति से खिलवाड़, नतीजा ऐसा पाया । कहे सुधा कर जोरि, वनों को अब ना काटें । पर्यावरण सुधार , सुखद बीते दिन-रातें ।। गर्मी पर मेरी एक और रचना पढ़िए इसी ब्लॉग पर- ●  उफ्फ ! "गर्मी आ गई "  

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