पहाड़ों से उद्गम, बचपन सा अल्हड़पन, चपल, चंचल वेगवती,झरने प्रपात बनाती अलवेली सी नदिया, इठलाती बलखाती राह के मुश्किल रौड़ो से,कभी नहीं घबराती काट पर्वत शिखरों को,अपनी राह बनाती इठलाती सी बालपन में,सस्वर आगे बढ़ती जीवन जैसी ही नदिया, निरन्तर बहती जाती.... अठखेलियां खेलते, उछलते-कूदते पर्वतों से उतरकर,मैदानों तक पहुँचती बचपन भी छोड़ आती पहाड़ों पर ही यौवनावस्था में जिम्मदारियाँँ निभाती कर्मठ बन मैदानों की उर्वरा शक्ति बढ़ाती कहीं नहरों में बँटकर,सिंचित करती धरा को कहीं अन्य नदियों से मिल सुन्दर संगम बनाती अब व्यस्त हो गयी नदिया रिश्ते अनेक निभाती जीवन जैसी ही नदिया, निरन्तर बहती जाती........ अन्नपूरित धरा होती, सिंचित होकर नदियों से हर जीवन चेतन होता,तृषा मिटाती सदियों से, अनवरत गतिशील प्रवृति, थामें कहाँ थम पाती है थमती गर क्षण भर तो,विद्युत बना जाती है परोपकार करते हुये कर्मठ जीवन अपनाती जीवन जैसी ही नदिया, निरन्तर बहती जाती....... वेगवती कब रुकती, आगे बढ़ना नियति है उसकी अब और सयानी होकर, आगे पथ अपना स्वयं बनाती छोड़ चपलता चंचलता , गंभीरता अपनाती कहीं डेल्टा कहीं...