"अब इसमें क्या अच्छा है ?...
जो भी होता है अच्छे के लिए होता है
जो हो गया अच्छा ही हुआ।
जो हो रहा है वह भी अच्छा ही हो रहा है।
जो होगा वह भी अच्छा ही होगा ।
अच्छा , अच्छा , अच्छा !!!
जीवन में सकारात्मक सोच रखेंगे
तो सब अच्छा होगा !!!
तो सब अच्छा होगा !!!
मूलमंत्र माना इसे
और अपने मन में, सोच में , व्यवहार में
भरने की कोशिश भी की।
परन्तु हर बार कुछ ऐसा हुआ अब तक,
कि प्रश्न किया मन ने मुझसे ,
कभी अजीब सा मुँह बिचकाकर,
तो कभी कन्धे उचकाकर
"भला अब इसमें क्या अच्छा है" ?
कि प्रश्न किया मन ने मुझसे ,
कभी अजीब सा मुँह बिचकाकर,
तो कभी कन्धे उचकाकर
"भला अब इसमें क्या अच्छा है" ?
क्या करूँ ?
कैसे बहलाऊँ इस नादान मन को ?
बहलाने भी कहाँँ देता है ?
जब भी कुछ कहना चाहूँ ,
ये मुझसे पहले ही कहता है,
जब भी कुछ कहना चाहूँ ,
ये मुझसे पहले ही कहता है,
बस -बस अब रहने भी दे !
बहुत सुन लिया ,
अब बस कर !
हैं विपरीत परिस्थितियां
समझौता इनसे करने भी दे !
अच्छा है या फिर बुरा है,
जो है सच
समझौता इनसे करने भी दे !
अच्छा है या फिर बुरा है,
जो है सच
उसमें जीने भी दे !
बस ! अपनी ये सकारात्मक सोच को
अपने पास ही रहने दे.!
फिर अपना सा मुँह लिए
चुप रह जाती हूँ मैं
चुप रह जाती हूँ मैं
अब इसमें क्या अच्छा है ?
इस प्रश्न में कहीं खो सी जाती हूँ
इस प्रश्न में कहीं खो सी जाती हूँ
और फिर शून्य में ताकती खुदबुदाती रह जाती हूँ
प्रश्न पर निरुत्तर सी.... ।
प्रश्न पर निरुत्तर सी.... ।
चित्र: साभार गूगल से....
टिप्पणियाँ
ऐसे सवाल बच्चे पूछते हैं या फिर अक्ल के कच्चे पूछते हैं.
आपके दिलो-दिमाग में गाँधी जी के तीनों बंदरों के गुण एक साथ समाहित होने पर आपको बधाई !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है...
सादर आभार...
सस्नेह आभार...
सादर आभार..
अब इसमें क्या अच्छा है वाहह्ह्
ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
सस्नेह आभार...।