नवपल्लव से तरु सजे, झड़़े पुराने पात । महकी मधुर बयार है, सुरभित हुआ प्रभात ।। पुष्पों की मुस्कान से, महक रही भिनसार । कली-कली पे डोलके, भ्रमर करे गुंजार ।। भौरे गुनगुन गा रहे , स्नेह भरे अब गीत । प्रकृति हमें समझा रही ,परिवर्तन की रीत ।। आम्र बौंर पिक झूमता , कोकिल कूके डाल । बहती बासंती हवा टेसू झरते लाल ।। गेहूँ बाली हिल रही, पुरवाई के संग । पीली सरसों खिल रही, चहुँदिशि बिखरे रंग ।। पिघली बर्फ़ पहाड़ की, खिलने लगे बुरांस । सिंदूरी सेमल खिले, फ्यूंली फूली खास ।। श्वेत पुष्प से लद रहे, हैं मेहल के पेड़ । पंछी घर लौटन लगे, शहर प्रवास नबेड़ ।। बन-बन हैं मन मोहते, महके जब ग्वीराल । थड़िया-चौंफला गीत सु, गूँज उठी चौपाल ।। बेडू तिमला फल पके, पके हिंसर किनगोड़ । काफल, मेलू भी पके, लगती सबमें होड़ ।। हरियाली चौखट लगी, सजे फूल दहलीज । फूलदेइ त्यौहार में, हर मन हुआ बहीज ।। जीवन मधुमय हो गया , मन में है उल्लास । प्रकृति खुशी से झूमती,आया जब मधुमास ।। भिनसार=सुबह नबेड़=निपटाकर) बहीज=आनंदित) इसके अलावा उत्तराखंड के पर्व , लोकगीत-नृत्य और फल एवं फूलों के वृक्ष आदि...