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बधाई शुभकामनाएं

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  आओ लौटें ब्लॉग पर, लेखन सुलेख कर एक दूसरे से फिर, वही मेल भाव हो । पंच लिंक का आनंद,मंच सजे सआनंद हर एक लिंक सार, पढ़ने का चाव हो । सम्मानित चर्चाकार, सम्भालें हैं कार्यभार स्थापना दिवस आज, पूरा हर ख़्वाव हो । शुभकामना अनेक, मंच फले अतिरेक ऐसे नेक कार्य हेतु, मन से लगाव हो । पंच लिंक की चौपाल, सजे यूँ ही सालों साल बधाई शुभकामना, शुद्ध मन भाव हो । मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर 👇 ब्लॉग से मुलाकात.. बहुत समय के बाद  

गृहस्थ प्रेम

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तुम साथ होते हो तो न जाने कितनी कपोल-कल्पनाएं  उमड़ती-घुमड़ती हैं अंतस में... और मैं तड़पती हूँ एकान्त के लिए कि झाँँक सकूँ एक नजर अपनी कल्पनाओं के खूबसूरत संसार में। तुम्हारी नजरों से बचते-बचाते छुप-छुपके झाँक ही लेती हूँ और देखने लगती हूँ कोई खूबसूरत सपना पर तभी तुम टोक देते हो कि "कहाँ खो गई" !!! फिर क्या.....तुमसे छुपाये नहीं छुपा पाती अपनी खूबसूरत कल्पनाओं के  अधूरे से सपने को। और फिर सुनते ही तुम निकल पड़ते हो  बिना कुछ कहे ,   जैसे रूठे से मैं असमंजस में सोचती रह जाती हूँ  कि मैंने किया क्या? बस सपना ही तो देखा था, अधूरा सा। तुम्हारे जाने के बाद समय है एकांत भी ! पर न जाने क्यों कोई सपना नजर नहीं आता नहीं उमड़ती अंतस में वैसी कल्पनाएं सब सूना सा हो जाता है तब वर्तमान में हकीकत के साथ जीती हूँ मैं ठीक तुम्हारी तरह हमारे हकीकत के घर-संसार की पहरेदार बनकर तुम्हारे इंतजार में तुम्हारी यादों के साथ ! और फिर एक दिन खत्म होता है ये यादों का सिलसिला और पल-पल का इंतजार तुम्हारे आने के साथ ! ह...

भावनाओं के प्रसव की उपज है कविता....

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आज मन में ख्याल आया रचूँ मैं भी इक कविता मन को बहुत अटकाया इधर-उधर दौड़ाया कुछ पल की सैर करके ये खाली ही लौट आया डायरी रह गयी यूँ कोरी कल्पना रही अधूरी मैने भी जिद्द थी ठानी है कविता मुझे बनानी जा ! उड़ मन परी लोक में ला ! परियों की कोई कहानी मैं उसमें से कुछ चुन लूँ फिर कागज पे कलम से बुन लूँ बन जाये कोई कविता जो मन को लगे सुहानी फुर उड़ चला ये गगन में लौटा फिर इसी चमन में पर ना साथ कुछ भी लाया मैने फिर इसे भगाया जा ! सागर बड़ा सुहाना सुन्दर हो कोई मुहाना ! कहीं सीपी मचल रही हो बूँद मोती में ढल रही हो ! जा ! वहीं से कुछ ढूंढ लाना रे ! मन खाली न आना ! पर ये खाली ही आया इसे वहां भी कुछ न भाया मैं तब भी ना हार मानी मुझे कविता जो थी बनानी इस मन को फिर समझाया देख ! सावन कहीं हो आया रिमझिम फुहारें बरस रहीं हो धरा महकी बहकी सी हो कोई नवेली सज रही हो हाथ मेंहदी रच रही हो हौले उसके पास जाना प्रीत थोड़ी ले के आना मैं उसी से प्रीत चुन लूँ फिर कागज पे कलम से बुन लूँ बने कविता या फिर कहानी जो मन को लगे सुहानी मेरी जिद्द पे मन उकताया झट अन्तर में जा समाया...

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