ज्ञान के भण्डार गुरुवर
ख्याति लब्ध पत्रिका 'अनुभूति' के 'अपनी पाठशाला' विशेषांक में मेरी रचना 'ज्ञान के भण्डार गुरुवर ' प्रकाशित करने हेतु आ.पूर्णिमा वर्मन दीदी का हार्दिक आभार । ज्ञान के भंडार गुरुवर, पथ प्रदर्शक है हमारे । डगमगाती नाव जीवन, खे रहे गुरु के सहारे । गुरु की पारस दृष्टि से ही , मन ये कुंदन सा निखरता । कोरा कागज सा ये जीवन, गुरु की गुरुता से महकता । देवसम गुरुदेव को हम, दण्डवत कर, पग-पखारें । ज्ञान के भंडार गुरुवर, पथ प्रदर्शक है हमारे । गुरु कृपा से ही तो हमने , नव ग्रहों का सार जाना । भू के अंतस को भी समझा, व्योम का विस्तार जाना । अनगिनत महिमा गुरु की, पा कृपा, जीवन सँवारें । ज्ञान के भंडार गुरुवर, पथ प्रदर्शक है हमारे । तन में मन और मन से तन, के गूढ़ को बस गुरु ही जाने । बुद्धि के बल मन को साधें, चित्त चेतन के सयाने । अथक श्रम से रोपते , अध्यात्म शिष्योद्यान सारे। ज्ञान के भंडार गुरुवर, पथ प्रदर्शक है हमारे । पढ़िए पत्रिका 'अनुभूति' में प्रकाशित मेरी एक और रचना ● बने पकौड़े गरम-गरम