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मई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

उदास पाम

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  जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है लगता नही है मन कहीं उसी के पास है वह तो मुझे बता रहा मुझे  समझ न आ रहा कल तक था सहलाता मुझे अब नहीं लहरा रहा क्या करूँ अबुलन है ये पर मेरा खास है लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है पहली नजर में भा गया फिर घर मेरे ये आ गया रौनक बढ़ा घर की मेरी  सबका ही मन लुभा गया माना ये भी सबने कि इससे शुद्ध श्वास है लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है खाद पानी भी दिया नीम स्प्रे भी किया झुलसी सी पत्तियों ने सब अनमना होके लिया दुखी सा है वो पॉट जिसमें इसका वास है लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है। यदि जानते हैं आप तो कृपया सलाह दें मरते से मेरे पाम के  इस दुख की थाह लें बस आपकी सलाह ही इकमात्र आस है लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है।।

अब दया करो प्रभु सृष्टि पर

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भगवान तेरी इस धरती में  इंसान तो अब घबराता है इक कोविड राक्षस आकर मानव को निगला जाता है तेरे रूप सदृश चिकित्सक भी अब हाथ मले पछताते हैं वरदान से इस विज्ञान को छान संजीवनी पा नहीं पाते हैं अचल हुआ इंसान कैद जीवनगति रुकती जाती है तेरी कृपादृष्टि से वंचित प्रभु ये सृष्टि बहुत पछताती है जब त्राहि-त्राहि  साँसे करती दमघोटू तब अट्हास करे ! अस्पृश्य तड़पती रूहें जब अरि एकछत्र परिहास करे ! तन तो निगला मन भी बदला मानवता छोड़ रहा मानव साँसों की कालाबाजारी में कफन बेच बनता दानव अब दया करो प्रभु सृष्टि पर  भूलों को अबकी क्षमा कर दो! कोविड व काले फंगस को दुनिया से दूर फ़ना कर दो चित्र साभार;photopin.com से।

अभी भी हाथ छोटे हैं

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 सिसकती है धरा देखो गगन आँसू बहाता है ग्रीष्म पिघली बरफ जैसी मई भी थरथराता है रुकी सी जिन्दगानी है अधूरी हर कहानी है शवों से पट रही धरती प्रलय जैसी निशानी है ये क्या से क्या हुआ जीवन थमी साँसें बिलखती हैं दवा तो क्या, दुआ भी ना रूहें तन्हा तड़पती हैं नजर किसकी जमाने को आज इतना सताती है अद्यतन मास्क में छुपता तरक्की भी लजाती है सदी बढ़ते जमाने से सदी भर पीछे लौटे हैं समझ विज्ञान को आया अभी भी हाथ छोटे हैं        चित्र साभार, photopin.com  से

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