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मई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

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सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी ।  बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया  

बेटी----टुकड़ा है मेरे दिल का

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  मुद्दतों बाद उसका भी वक्त आया जब वह भी कुछ कह पायी सहमत हो पति ने आज सुना वह भी दिल हल्का कर पायी आँखों में नया विश्वास जगा आवाज में क्रंदन था उभरा कुचली सी भावना आज उठी सोयी सी रुह ज्यों जाग उठी हाँ ! बेटी जनी थी बस मैंने तुम तो बेटे ही पर मरते थे बेटी बोझ, परायी थी तुमको उससे यूँ नजरें  फेरते थे... तिरस्कार किया जिसका तुमने उसने देवतुल्य सम्मान दिया निज प्रेम समर्पण और निष्ठा से दो-दो कुल का उत्थान किया आज बुढापे में बेटे ने अपने ही घर से किया बेघर बेटी जो परायी थी तुमको बिठाया उसने सर-आँखोंं पर आज हमारी सेवा में वह खुद को वारे जाती है सीने से लगा लो अब तो उसे ये प्रेम उसी की थाती है....... ********************** सच कहती हो,खूब कहो ! शर्मिंदा हूँ निज कर्मों से...... वंश वृद्धि और पुत्र मोह में  उलझा था मिथ्या भ्रमोंं से फिर भी धन्य हुआ जीवन मेरा जो पिता हूँ मैं भी बेटी का बेटी नहीं बोझ न पराया धन वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!!               ...

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