संदेश

अप्रैल, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की उलझनें

चित्र
बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

हौले से कदम बढ़ाए जा...

चित्र
अस्मत से खेलती दुनिया में चुप छुप अस्तित्व बनाये जा आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे हौले से कदम बढ़ाये जा..... छोड़ दे अपनी ओढ़नी चुनरी, लाज शरम को ताक लगा बेटोंं सा वसन पहनाऊँ तुझको कोणों को अपने छुपाये जा आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे  हौले से कदम बढ़ाए जा.... छोड़ दे बिंंदिया चूड़ी कंगना अखाड़ा बनाऊँ अब घर का अँगना कोमल नाजुक हाथों में अब  अस्त्र-शस्त्र पहनाए जा आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे हौले से कदम बढ़ाए जा..... तब तक छुप-छुप चल मेरी लाडो जब तक तुझमेंं शक्ति न आये आँखों से बरसे न जब तक शोले किलकारी से दुश्मन न थरथराये हर इक जतन से शक्ति बढ़ाकर फिर तू रूप दिखाए जा... आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे हौले से कदम बढाए जा....।। रक्तबीज की इस दुनिया में रक्तपान कर शक्ति बढ़ा चण्ड-मुण्ड भी पनप न पायेंं ऐसी लीला-खेल रचा   आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे हौले से कदम बढ़ाए जा..... रणचण्डी दुर्गा बन काली ब्रह्माणी,इन्द्राणी, शिवा.... अब अम्बे के रूपोंं में आकर  डरी सी धरा का डर तू भगा आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे  ...

लावारिस : "टाइगर तो क्या आज कुत्ता भी न रहा"

चित्र
हैलो शेरू ! बडे़ दिनों बाद दिखाई दिया,कहाँ व्यस्त था यार ! आजकल ?  (डॉगी टाइगर ने डॉगी शेरू के पास जाकर बड़ी आत्मीयता से पूछा) तो शेरू खिसियाते हुए पीछे हटा और बुदबुदाते हुए बोला; ओह्हो!फँस गया... अरे यार !  परे हट !  मालकिन ने देख लिया तो मेरी खैर नहीं ,  यूँ गली के कुत्तों से मेरा बात करना मालकिन को बिल्कुल नहीं भाता ,  मेरी बैण्ड बजवायेगा क्या ?.. टाइगर  -  "अरे शेरू! मैं कोई गली का कुत्ता नहीं ! अबे यार ! तूने मुझे पहचाना नहीं  ?  मैं 'टाइगर' तेरे मालिक के दोस्त वर्मा जी का टाइगर ! शेरू (आश्चर्य चकित होकर) -- टाइगर ! अरे ! ये तेरी क्या दशा हो गयी है यार !  कितना कमजोर हो गया है तू  !  मैं तो क्या तुझे तो कोई भी नहीं पहचान पायेगा ।क्या हुआ यार ! बीमार है क्या ?  इलाज-विलाज नहीं करवाया क्या तेरे मालिक ने ?  डींगें तो बड़ी-बड़ी हांकता है तेरा मालिक !  ओह ! माफ करना यार ! अपने मालिक के बारे में सुनकर गुस्सा आ रहा होगा,  हैं न !  मुझे भी आता है  , क्या करे ? वफादार प्राणी जो होते हैं हम कु...

अधूरी उड़ान

चित्र
एक थी परी हौसला और उम्मीदों के मजबूत पंखों से उड़ने को बेताब कर जमाने से बगावत पढ़कर जीते कई खिताब विद्यालय भी था सुदूर पैदल चलती रोज मीलों दूर अकेले भी निर्भय होकर वीरान जंगली,ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी राहों पर खूंखार जंगली जानवर भी जैसे साथी बन गये थे उसके हर विघ्न और बाधाएं जैसे हार गयी थी उससे कदम कदम की सफलता पाकर पंख उसके मजबूत बन गये उड़ान की प्रकिया के लिए पायी डिग्रियां सबूत बन गये एक अनोखा व्यक्तित्व लिए आत्मविश्वास से भरपूर बढ़ रही थी अनवरत आगे कि मंजिल अब नहीं सुदूर तभी अचानक कदम उसके उलझकर जमीं पर लुढ़क गये सम्भलकर देखा उसने हाय! आँखों से आँसू छलक गये आरक्षण रूपी बेड़ियों ने जकड़ लिए थे बढ़ते कदम उड़ान भरने को आतुर पंखों ने फड़फड़ तड़प कर तोड़ा दम।।                चित्र;साभार गूगल से...

फ़ॉलोअर