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बधाई शुभकामनाएं

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  आओ लौटें ब्लॉग पर, लेखन सुलेख कर एक दूसरे से फिर, वही मेल भाव हो । पंच लिंक का आनंद,मंच सजे सआनंद हर एक लिंक सार, पढ़ने का चाव हो । सम्मानित चर्चाकार, सम्भालें हैं कार्यभार स्थापना दिवस आज, पूरा हर ख़्वाव हो । शुभकामना अनेक, मंच फले अतिरेक ऐसे नेक कार्य हेतु, मन से लगाव हो । पंच लिंक की चौपाल, सजे यूँ ही सालों साल बधाई शुभकामना, शुद्ध मन भाव हो । मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर 👇 ब्लॉग से मुलाकात.. बहुत समय के बाद  

तन में मन है या मन में तन ?

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ये मन भी न पल में इतना वृहद कि समेट लेता है अपने में सारे तन को, और हवा हो जाता है जाने कहाँ-कहाँ ! तन का जीव इसमें समाया उतराता उकताता जैसे हिचकोले सा खाता, भय और विस्मय से भरा, बेबस ! मन उसे लेकर वहाँ घुस जाता है जहाँ सुई भी ना घुस पाये, बेपरवाह सा पसर जाता है। बेचारा तन का जीव सिमटा सा अपने आकार को संकुचित करता, समायोजित करता रहता है बामुश्किल स्वयं को इसी के अनुरूप वहाँ जहाँ ये पसर चुका होता है सबके बीच।  लाख कोशिश करके भी ये समेटा नहीं जाता,  जिद्दी बच्चे सा अड़ जाता है । अनेकानेक सवाल और तर्क करता है समझाने के हर प्रयास पर , और अड़ा ही रहता है तब तक वहीं जब तक भर ना जाय । और फिर भरते ही उचटकर खिसक लेता वहाँ से तन की परवाह किए बगैर । इसमें निर्लिप्त बेचारा तन फिर से खिंचता भागता सा चला आ रहा होता है इसके साथ, कुछ लेकर तो कुछ खोकर अनमना सा अपने आप से असंतुष्ट और बेबस । हाँ ! निरा बेबस होता है ऐसा तन जो मन के अधीन हो।  ये मन वृहद् से वृहद्तम रूप लिए सब कुछ अपने में समेटकर करता रहता है मनमानी । वहीं इसके विपरीत कभी ये पलभर में सिकुड़कर या सिमटकर अत्यंत सूक्ष्म रूप में छिपक...

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